Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 67
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/६५ मुझे क्या प्रयोजन है ? मेरा मनोरथ था कि अब तो नाथ का समागम होगा, किन्तु मेरा यह मनोरथ भी टूट गया। अरे रे ! इस मन्दभागिनी के कारण आपको कष्ट प्राप्त करना पड़ा। आपके कष्ट की बात सुनने से पूर्व ही मेरे प्राण क्यों नहीं छूट गये।" अंजना को इस तरह विलाप करती देख वसंतमाला कहने लगी – “हे देवी ! ऐसे वचन मत बोल। तू धैर्य धारण कर, अवश्य ही तुझे तेरे स्वामी का समागम प्राप्त होगा।" राजा प्रतिसूर्य ने भी उसे धैर्य बँधाते हुये कहा - "हे पुत्री ! तू विश्वास रख, मैं शीघ्र ही तेरे पति को खोजकर लाऊँगा" ___ - इस प्रकार कहकर मन से भी तीव्र गतिमान विमान में बैठकर राजा प्रतिसूर्य ने कुमार की खोज आरम्भ कर दी। राजा प्रतिसूर्य की सहायतार्थ दोनों श्रेणियों के विद्याधर एवं लंकानिवासी भी इस कार्य में जुट गये। खोजते-खोजते वे सभी भूतरुवर वन में आये और वहाँ अंबरगोचर हाथी को देखा, जिससे सभी विद्याधरों को अपार हर्ष हुआ कि जहाँ यह हाथी है, वहीं पवनकुमार भी होंगे; क्योंकि पूर्व में भी अनेक बार कुमार इस गज के साथ देखे गये हैं। जब विद्याधर उस अंजनगिरी समान हाथी के समीप पहुँचे तो उसे निरंकुश देखकर भयभीत हो उठे और वह हाथी भी विद्याधरों के लश्कर एवं शोर-गुल को देख-सुनकर क्षोभावस्था को प्राप्त हुआ। उसके कपाल में से मद झरने लगा और वह गर्जन करने लगा। वह तीव्र वेग से कुमार के आस-पास चक्कर लगाने लगा। जिस तरफ हाथी दौड़ता, विद्याधर उस दिशा से हट जाते । स्वामी की रक्षार्थ तत्पर वह हाथी सूंड में तलवार लेकर कुमार के समीप खड़ा हो गया, कुँवर की समीपता छोड़कर वह थोड़ा भी इधर-उधर नहीं होता था, उसके भय से विद्याधर भी समीप नहीं आ सकते थे। अन्ततोगत्वा विद्याधरों ने हथिनी के द्वारा स्नेहपूर्वक उस पर काबू पाया और समीप जाकर कुमार को देखने लगे।

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