Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/७२
रामचन्द्रजी धर्मात्मा होने पर भी बंधुप्रेम के मोह में पड़कर लक्ष्मण के मृतक शरीर को कंधे पर लाद कर फिर रहे हैं। अपने काका की मृत्यु
और पिता की ऐसी दशा देखकर रामचन्द्रजी के पुत्र लव और कुश-दोनों संसार से वैराग्य को प्राप्त हुए।
दोनों राजकुमार छोटी उम्र में ही चैतन्य तत्त्व के जाननहार और महावैराग्यवन्त हुए। अरे ! संसार की यह स्थिति !! तीन खण्ड के धनी बलभद्र की यह दशा !!! - ऐसा विचार करके दोनों कुमार दीक्षा लेने के लिए तैयार हो गये, स्वर्ण के समान उज्ज्वल कान्ति वाले वे दोनों कुमार पिताजी के पास दीक्षा लेने की स्वीकृति माँगने आये हैं। रामचन्द्रजी के सामने लक्ष्मण की मृतदेह पड़ी है और दोनों राजकुमार आकर अति विनय पूर्वक हाथ जोड़कर वैराग्य से ओतप्रोत वाणी से स्वीकृति माँगते हैं -
“हे पिताजी ! इस असार-संसार से अब बस होओ। हमें आत्मा की स्वानुभूति के द्वारा अंतर में स्थित आनंद धाम में जाने की आज्ञा दो।"
“जिसमें लूंस-ठूस कर (लबालब) आनन्द भरा हुआ है, ऐसा हमारा चिदानन्द स्वभाव है।' - ऐसे भानसहित लवकुश कुमार रामचन्द्रजी से कहते हैं - "हे तात् ! हमें आज्ञा दीजिये....अब हम अपने चिदानन्द स्वरूप में समा जाने की आज्ञा माँगते हैं....इस संसार में बाह्य (स्वरूप से च्युत) भाव अनंतकाल तक किये, अब हम इस संसार की स्वप्न में भी इच्छा नहीं करते.... अब तो मुनि होकर हम हमारी पूर्ण अतीन्द्रिय परम आनन्द दशा को प्राप्त करेंगे। तात् ! इस जीव ने संसार-भ्रमण करते हुए चार गति के अवतार अनन्त बार किये हैं। एकमात्र सिद्धपद कभी प्राप्त नहीं किया, अत: अब तो हम हमारे चिदानन्दस्वरूप में समा जायेंगे, और अभूतपूर्व सिद्धपद को प्राप्त करेंगे।"
लव-कुश कुमार आगे कहते हैं - "पुण्य और पाप दोनों से भिन्न हमारे ज्ञानानन्द स्वरूप को हमने जाना है और अब उसमें लीन होकर हम