Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/७८ लेकर चैतन्य में लीन हुए और केवलज्ञान प्रगटकर मोक्ष पाया। इस पावागढ़ के जिस स्थान से वे मोक्ष गये, उसके ठीक ऊपर उर्ध्वलोक में वे सिद्ध भगवान के रूप में विराजमान हैं। उर्ध्वलोक में अनंत सिद्ध भगवन्तों की पंक्ति बैठी है, उन सिद्ध भगवन्तों का स्मरण बहुमान करने में ऐसे सिद्धक्षेत्र निमित्त हैं।
लव-कुश कुमार, लाट देश के नरेन्द्र राजा और पाँच करोड़ मुनिराज -ये सब यहीं से सिद्ध भगवान बनकर लोकाग्र में विराजमान हैं। ऐसे सिद्ध भगवान को वास्तविक रूप में जानने से संसार का राग ही उड़ जाता है और सिद्ध भगवान के समान चिदानन्द स्वभाव का विश्वास हो जाता है अर्थात् सिद्धि का पंथ हाथ लग जाता है....इसी का नाम तीर्थयात्रा है, ऐसी तीर्थयात्रा करने वाला जीव संसार से तिरे बिना नहीं रहता।
__ लव-कुश यहाँ से सिद्ध दशा प्राप्त कर मुक्तिनगर पहुँचे....मुक्ति नगर में कोई गढ़ या बंगला आदि नहीं है, वहाँ तो चैतन्य का पूर्णानन्द स्वभाव खिल गया है, उसी का नाम मुक्तिनगर है, वहाँ वे इन इन्द्रिय विषयों से पार अतीन्द्रिय स्वभाव का निरंतर अनुभव करते हैं।
चैतन्य स्वभाव को प्राप्त परमात्मा संसार के जीवों को बताते हैं - “अरे जीवो ! तुम भी हमारे समान परमात्मा हो, तुममें भी हमारे समान ही पूर्णज्ञान और आनन्द की शक्ति भरी है, उसका विश्वास करो....और उसमें अन्तर्मुख होओ.... इसी में तुम्हारा सुख है। बाह्य इन्द्रिय विषयों में या बाह्य वृत्ति में कहीं भी तुम्हारा सुख नहीं है।"
__ ऐसा सर्वज्ञ भगवान का सन्देश सन्तजन परमकरुणापूर्वक जगत के जीवों को सुनाते हैं - "अरे जीवो ! अपने चिदानन्द तत्त्व को जानकर उसमें स्थिर होओ....यह मुद्दे (मूलतत्त्व) की बात है....अन्य बात तो अनादि से करते आये हो, जो बात पूर्व में कभी भी नहीं सुनी और जिससे