Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/६७ शोकसतप्त हो रुदन कर रही थी, अत: मैंने उसे धैर्य बंधाया। उसी गुफा में उसने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। उस पुत्र की कांति से तो सारी ही गुफा ऐसी जगमगा रही थी, मानो सुवर्ण निर्मित हो।
इतनी बात सुनते ही हर्ष से रोमांचित पवनकुमार पूछने लगा - "हे महानुभाव ! अंजना कहाँ है ? और बालक तो सुख से है न ?”
प्रतिसूर्य ने कहा – “अंजना को उसके पुत्र सहित विमान में बैठाकर मैं अपने राज्य हनुमत द्वीप ले जा रहा था, तभी एकाएक मार्ग में बालक विमान से गिर पड़ा...."
बालक के गिरने की बात सुनते ही 'हाय-हाय' – ऐसे उद्गार कुमार के मुख से निकल पड़े।
तब प्रतिसूर्य ने कहा – “अरे कुमार ! चिन्ता मत करो; किन्तु उसके पश्चात् घटित घटना का श्रवण करो, जिससे तुम्हारा सम्पूर्ण दुख नष्ट हो जायेगा।
....बालक के गिरते ही मैंने विमान को नीचे उतारकर देखा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मैंने देखा पर्वत तो खण्ड-खण्ड हो गया है और बालक एक शिला पर पड़ा-पड़ा क्रीड़ा कर रहा है। दशों दिशायें उसके तेज से जगमगा रहीं हैं। तब मैंने उस चरमशरीरी बालक को तीन प्रदक्षिणा देकर नमस्कार किया। उसकी माता को भी अपूर्व आनन्द हुआ और उसका नाम शैलकुमार' रखा । सखी वसंतमाला एवं शैलकुमार सहित अंजना को मैं हनुमत द्वीप ले गया, वहाँ पुत्रजन्म का महान उत्सव मनाया, अत: उस बालक का हनुमान' - यह दूसरा नाम प्रसिद्ध हुआ।
हे कुमार ! वह पतिव्रता स्त्री अपनी सखी एवं पुत्र सहित हमारे नगर में विराजमान है, वहाँ सर्व आनन्द है।"
___इस वृत्तान्त को सुनकर पवनकुमार को हार्दिक प्रसन्नता हुई और अंजना को देखने के उद्देश्य से शीघ्र ही उन सबने हनुमत द्वीप की तरफ प्रस्थान कर दिया।