Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation
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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/६८ नगर में पहुँचने पर राजा प्रतिसूर्य ने सभी का भव्य स्वागत किया।
जब कुमार अंजना के निकट पहुँचे तो लज्जाशील अंजना ने बालक हनुमान को कुमार के हाथों में सौंप दिया। 'मुक्तिदूत चरमशरीरी पुत्र को देखने मात्र से कुमार एवं अंजना अपने सम्पूर्ण दुख भूल गये और लम्बे अन्तराल के पश्चात् हुए इस मधुर-मिलन से दोनों को अपार हर्ष हुआ।
राजा प्रतिसूर्य ने सभी विद्याधरों को कुछ दिनों अपने यहाँ सम्मान सहित ठहराया। तत्पश्चात् सभी ने अपने-अपने स्थान की ओर प्रस्थान किया। जब पवनकुमार भी जाने लगे, तब उन्होंने पवनकुमार को अत्याग्रह करके वहीं रोक लिया। हनुमत द्वीप में हनुमान देवों की तरह क्रीड़ा करते हैं और आनन्दकारी चेष्टायें करते हैं, जिन्हें देखकर माता-पिता के आनन्द का पार नहीं रहता।
इस प्रकार समय व्यतीत होता गया। हनुमान यौवनावस्था को प्राप्त हुये, कामदेव होने से उनके रूप की अद्भुतता लेखनी का विषय नहीं है। वे महाबलवान अतिशय बुद्धिमान हैं, उन्हें अल्पवय में ही अनेक विद्यायें सिद्ध हुई, उन्हें रत्नत्रय धर्म के प्रति परमप्रीति है। वेसर्वशास्त्रों के अभ्यास में प्रवीण हैं, तथा देव-गुरु-धर्म की उपासना में सदैव तत्पर हैं।
श्री हनुमान के जन्म, पवनंजय-अंजना के मिलाप की यह कथा अब यहीं समाप्त होती है। इसे पूर्ण करते हुए शास्त्रकार कहते हैं
___"श्री हनुमान जन्म एवं पवनंजय-अंजना के मिलाप की यह अद्भुत कथा अनेक रसों से परिपूर्ण है। जो जीव भावपूर्वक इस कथा को सुनेंगे, सुनायेंगे व पढ़ेंगे, उन्हें धर्म में दृढ़ता प्राप्त होगी, उनके वैराग्य की अभिवृद्धि होगी, अशुभ कर्मों की निवृत्ति एवं शुभकर्मों में प्रवृत्ति होगीइस तरह से उन्हें अनुक्रम से धर्म की अभिवृद्धि होते-होते जगत में दुर्लभ ऐसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।"