Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 71
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/६९ पाँच करोड़ मुनिराजों का मुक्तिधाम पावागढ़ सिद्धक्षेत्र और लव-कुश वैराग्य (वीर संवत् २४८५ में दक्षिण प्रान्त के तीर्थक्षेत्रों की वन्दना करने के उद्देश्य से आध्यात्मिक सत्पुरुष पूज्य श्री कानजी स्वामी ने जब सोनगढ़ से प्रस्थान किया, तब सबसे पहला तीर्थ पावागढ़ सिद्धक्षेत्र आया । वहाँ पौष सुदी अष्टमी के दिन स्वामीजी का जो प्रवचन हुआ था, उसी के आधार से यह कथा तैयार की गई है। इस प्रवचन कथा से स्वामीजी की तीर्थों एवं तीर्थों से मुक्ति पधारे उन परम दिगम्बर भावलिंगी सन्तों के प्रति परम भक्ति का पता चलता है। साधक संतों के प्रति तीव्र भक्ति, वैराग्य की धुन और तीर्थयात्रा का उल्लास पूज्य स्वामीजी के प्रवचनों में भी झलकता था ।) पावागढ़ सिद्धक्षेत्र से मुक्ति पधारे लव-कुश कुमार की अन्तरंग दशा का वर्णन करते हुए स्वामीजी इस प्रवचन में कहते हैं. — “चैतन्य के विश्वासपूर्वक दोनों राजपुत्र स्वयं स्वानुभूति के द्वारा अन्तर में देखे हुए मार्ग पर चले गये.... अहो ! देखो तो सही इन धर्मात्माओं की दशा !!! पर्वत श्रृंखला को भी देखो ! कैसी मनोहारी छटा है ! यहाँ आते समय जब से पावागढ़ पर्वत देखा है, तब से ही लव और कुश का जीवन आँखों के आगे झूल रहा है और उनका ही विचार आ रहा है। अहो ! धन्य उनकी मुनिदशा ! धन्य उनका वैराग्य !! और धन्य उनका जीवन !!! सीता माता की कोख से अन्तिम जन्म लेकर उन्होंने अपना जीवन सफल कर लिया । " श्री रामचंद्रजी के दोनों पुत्र इस पावागढ़ से मोक्ष गये हैं । रामचन्द्र और लक्ष्मण दोनों भाई क्रमश: बलदेव ( बलभद्र ) और वासुदेव (नारायण) थे। एक बार इन्द्र-सभा में उन दोनों के परस्पर स्नेह की प्रशंसा हुई, तब दो देव उनकी परीक्षा करने के लिए आये और लक्ष्मण के महल के आसपास रामचन्द्रजी के मरण का कृत्रिम वातावरण बनाकर लक्ष्मण से कहने लगे – “ श्री रामचन्द्रजी का स्वर्गवास हो गया है । "

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