Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 58
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/५६ लगे – “हे पुत्री ! तुम्हारा यह पुत्र उत्तम संस्थान एवं उत्तम संहनन का धारक है, बज्रकाय है, तभी तो इसके गिरने से पर्वत के खण्ड-खण्ड हो गये। जब बाल्यावस्था में ही इसकी शक्ति देवों से अधिक है, तब यौवनावस्था में इसका पराक्रम कितना होगा ? अब यह तो निश्चित ही है कि यह जीव चरमशरीरी है, तद्भव मोक्षगामी है, पुनः देह धारण का कलंक इसको नहीं लगेगा, यह तो इसी भव में अशरीरी सिद्ध पद प्राप्त करेगा।" - इतना कहकर राजा प्रतिसूर्य ने अपनी पत्नी सहित बालक की तीन प्रदक्षिणा की तथा हाथ जोड़कर सिर झुकाकर नमस्कार किया। तत्पश्चात् पुत्र सहित अंजना को अपने विमान में बैठाकर अपने नगर की ओर प्रस्थान किया। राजा के शुभागमन के शुभ समाचारों को सुनकर प्रजांजनों ने नगर का शृंगार किया और राजा सहित सभी का भव्य स्वागत किया। अत्यन्त उत्साहपूर्ण वातावरण में पुत्र सहित अंजना एवं राजा प्रतिसूर्य ने नगर में प्रवेश किया। दशों दिशाओं में वादित्र के नाद से उन विद्याधरों ने पुत्र जन्म का भव्य महोत्सव मनाया। जैसा उत्सव स्वर्गलोक में इन्द्रजन्म का होता है, उससे किसी भी तरह यह उत्सव कम नहीं था। पर्वत में (गुफा में) जन्म हुआ और विमान से गिरने पर पर्वत खण्ड-खण्ड हो गया, अत: उस बालक की माता एवं मामा ने उसका नाम 'शैलकुमार' रखा तथा हनुमत द्वीप में उसका जन्मोत्सव आयोजित होने के कारण जगत में वह 'हनुमान' नाम से विख्यात हुआ। इस प्रकार शैल अथवा हनुमानकुमार हनुमत द्वीप में रहते थे, देव सदृश प्रभा के धारी उन हनुमानकुमार की चेष्टायें सभी के लिये आनन्ददायिनी बनी हुई थीं। राजा श्रेणिक को सम्बोधित करते हुये श्री गौतमस्वामी कहते हैं

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