Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 04
Author(s): Haribhai Songadh, Swarnalata Jain, Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 48
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-४/४६ - ऐसी अंधियारी रात्रि में वे दोनों सखियाँ उस गुफा में बैठी वार्तालाप कर रही थीं कि तभी भयंकर गर्जना करता हुआ एक सिंह गुफा द्वार पर आ पहुँचा । उसकी गर्जना से सारी गुफा तो ऐसे गूंज उठी, मानो भयाक्रांत पर्वत ही रुदन कर रहा हो। सिंह की भयानक गर्जना सुनकर अंजना ने प्रतिज्ञा की कि इस उपसर्गकाल में मेरा अनशन व्रत है। सखी वसंतमाला अंजना की रक्षा करने के लिये अत्यन्त व्याकुलता पूर्वक हाथ में तलवार लेकर आस-पास घूमने लगी, दोनों सखियाँ भयाक्रांत हो गईं। तभी उस गुफा में निवास कर रहे मणिचूलनामक गंधर्वदेव की रत्नचूला नामक स्त्री ने उससे कहा – “हे देव ! देखो ! ये दोनों स्त्रियाँ सिंह के भय से अत्यन्त विह्वल हो रही हैं, ये दोनों धर्मात्मा हैं। अत: इनकी रक्षा करना आपका कर्तव्य है।" ___ गन्धर्वदेव का हृदय भी दया से द्रवित हो गया, अतः उसने शीघ्र ही विक्रिया द्वारा अष्टापद का रूप धारण कर लिया। तत्पश्चात् सिंह और अष्टापद के युद्ध की भयंकर गर्जना चहुँ ओर फैलने लगी। इधर गुफा में अंजना तो जिनदेव के ध्यान में निमग्न थी और वसंतमाला सारस की भांति इस तरह विलाप कर रही थी – “हाय अंजना ! पहले तो पति-वियोग से तू दुखी हुई, किसी प्रकार पति समागम का सुख प्राप्त हुआ और गर्भ रहा तो सास ने बिना विचारे तुझ पर मिथ्या कलंक लगाकर घर से निष्कासित कर दिया। माता-पिता ने भी आश्रय देने से इन्कार कर दिया। अतः महाभयंकर वन में शरण प्राप्त की, यहाँ महान पुण्योदय से मुनिराज के दर्शन प्राप्त हुये, मुनिवर ने पूर्वभव बताकर धैर्य बँधाया, धर्मामृत पान कराया एवं गमन कर गये। प्रसूति के लिये तू इस गुफा में आयी तो अब यह सिंह भक्षण करने के लिये तैयार खड़ा है। हाय ! हाय !! यह राजपुत्री निर्जन वन में मरण को प्राप्त हो रही है। अरे ! इस वन के देवताओ ! दया करके इसकी रक्षा करो।

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