Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 42
________________ हुए कर्मों का क्षय होता है। इन चारों उपायों से कोई भी जीव मोक्ष पा सकता है। इसकी साधना के लिए जाति, कुल, वेश आदि कोई भी कारण नहीं है, किंतु जिसने भी कर्मबंधन को तोडकर आत्मगुणों को प्रकट कर लिया, वही मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी है। जैन दर्शन में गुणों का महत्व है - व्यक्ति, जाति, लिंग, कुल, संप्रदाय आदि का महत्व नहीं ___* तत्त्वज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य :- जैन दर्शन की यह तात्त्विक व्यवस्था मोक्षमार्ग परक है। यानी जीव को कर्मबंधन से मुक्त होने का पुरुषार्थ करने और मोक्ष प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। इस दृष्टि से इन जीवादि नौ तत्त्वों में से प्रथम जीव और अजीव ये दो तत्त्व मूल द्रव्य के वाचक है। आस्रव, पुण्य, पाप और बंध ये चार तत्त्व संसार व उसके कारण भूत राग - द्वेष आदि का निर्देश कर मुमुक्ष की साधना को जागृत करने के लिए है तथा संवर और निर्जरा ये दो तत्त्व संसार मुक्ति की साधना का विवेचन करते हैं। अंतिम मोक्ष की साधना के फल - परिणाम का संकेत करता है कि जीव स्वयं अपने स्वभाव को प्रकट कर उसी में रमण करते हुए आत्मा से परमातम बन जाता है। उस परमात्मा पद की साधना और उसका स्वरुप समझने के लिए ही जैन विचारकों ने तत्त्वज्ञान का यह विस्तार किया है। इस स्वरुप को समझकर उसकी ओर प्रवृत होना ही तत्त्वज्ञान की सार्थकता है - बुद्धि का सार है - तत्त्व विचारणा और देह का सार है - व्रत (संयम) का पालन करना। ***** 137 FrenshnatiPrideusteronly www.jainelibrary.org,

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