________________ उत्तम भाव रखो उत्तम भाव दान-शील-तप का प्राण है। नमक रहित भोजन, सुगन्ध रहित पुष्प, पानी रहित सरोवर की तरह... भाव रहित दान-शील-तप सफल नहीं होते। भाव से ही परम ज्ञान मिलता है। भाव से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। भाव से ही भव का नाश होता है। दान के पीछे धन की ममता हटाने का भाव रखो। शील के पीछे विषय-वासना घटाने का भाव रखो। तप के पीछे खाने की लोलुपता मिटाने का भाव रखो। धर्म के पीछे जन्म-मरण से छूटने का भाव रखो। मरुदेवी माता ने भाव से ही केवलज्ञान और मोक्ष पाया। भरत चक्रवती ने भाव से ही कांच के महल में केवलज्ञान पाया। इलाचीकुमार भावना भाते-भाते केवलज्ञानी बन गये। प्रत्येक धर्मक्रिया करते हुए उत्तम भाव रखना चाहिये। भाव रहित क्रियाएं अंक रहित शन्य के समान हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org