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3. अपर्याप्त नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्ति पूर्ण न करे उसे अपर्याप्त नाम कर्म
कहते हैं। TAL_बटाटा 4. साधारण नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से अनन्त जीवों को एक शरीर
की प्राप्ति होती हैं, अनंत जीव एक ही काया में रहतें है। उसे साधारण नाम कर्म कहते हैं। इस साधारण शरीरधारी अनन्त जीवों के जीवन, मरण, आहार
श्वासोच्छवास आदि परस्पराश्रित होते हैं। इसलिए वे साधारण कहलाते हैं। काई-शवाल
अर्थात् साधारण जीवों के आहारादिक कार्य सदृश और समान काल में होते
कांदा
निगाद
न्यग्रोध संस्थान
ULU
5. अस्थिर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से कान, नाक, जीभ आदि अस्थिर अर्थात् चपल होते है, उसे अस्थिर नाम कर्म कहते हैं। 6. अशुभ नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से नाभि से नीचे के अवयव अशुभ हो,
उसे अशुभनाम कर्म कहते है। पैर से स्पर्श होने पर अप्रसन्नता होती है, वही अशुभत्व का लक्षण है। . 7. दुर्भग या दौर्भाग्य नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव उपकार करने पर भी सभी को अप्रिय लगता है, अपमान को प्राप्त करता है, उसे दुर्भग या दौर्भाग्य नाम कर्म कहते हैं। 8. दुःस्वर नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय
पपीजना का
सम्मान करना से जीव को अप्रिय-कर्कश स्वर की प्राप्ति होती है, उसे दुःस्वर नाम कर्म कहते हैं। 9. अनादेय नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से हितकारी, सही एवं उचित बात III कहने पर भी लोग अमान्य करते है, ठुकरा देते है, उसे अनादेय नाम कर्म कहते हैं।
10. अयशः कीर्ति नाम कर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को निंदा. अकीर्ति और अयश मिलता है. उसे अयशकीर्ति नाम कर्म कहते हैं। स्थावर दशक की इन दस प्रकृतियों के विवेचन के साथ नाम कर्म की 103 प्रकृतियों का कथन समाप्त हुआ।
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