Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 95
________________ गंधनाम रस नाम स्पर्शनाम आनुपूर्वी विहायोगति 1. सुरभि गंध 1. तिक्त रस 1. गुरू स्पर्श 1. नरकानुपूर्वी नाम 1.शुभ विहायोगति 2. दुरभि गंध 2. कटु रस 2. लघु स्पर्श 2. तिर्यचानुपूर्वी नाम 2. अशुभ विहायोगति 3. कषाय रस 3. मुदु स्पर्श 3. मनुष्यानुपूर्वी नाम 4. आम्ल रस 4. कर्कश स्पर्श 4. देवानुपूर्वी नाम 5. मधुर रस 5. शीत स्पर्श 6. उष्ण स्पर्श 7. स्निग्ध स्पर्श 8. रूक्ष स्पर्श नाम कर्म बंध के हेतु ग्रन्थकार ने नाम कर्म की विशालता एवं गहनता को देखते हुए एक-एक प्रकृति के बंध हेतु पर प्रकाश न डालते हुए सम्पूर्ण नाम कर्म को दो भागों में विभक्त किया है : 1. शुभ नाम कर्म और 2. अशुभ नाम कर्म शुभ नाम कर्म के बंध हेतु 1. सरल स्वभाव :- सरल अर्थात् छल-कपट रहित होना, मन, वचन, काया की प्रवृत्ति में एक रूपता होना। 2. गारव रहित :- अर्थात् अपनी ऋद्धि, वैभव, शरीर, सौंदर्य आदि का अभिमान रहित होना। गारव तीन प्रका र का है। 1. ऋद्धि गारव 2. रस गारव और 3. शाता गारव 1. ऋद्धि गारव :- धन, सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सत्ता आदि से अपने को महत्वशाली समझना ऋद्धि गारव है। 2. रस गारव :- खाद्य पदार्थों के प्रति आसक्ति रस गारव हैं। 3. शाता गारव :- शरीर के स्वास्थ्य, सौंदर्य आदि का अभिमान करना, उसके प्रति आसक्तिशाता गारव हैं। 3. अविसंवादन :- दो व्यक्तियों के आपसी मतभेदों को मिटाकर एकता करा देना अथवा गलत रास्ते पर जाने वाले को सही मार्ग पर लगा देना। इसके विपरीत अर्थात् वक्र स्वभाव वाला, अतिशय गारव से युक्त और विसंवाद से जीव अशुभ नाम कर्म का बंध करता है। वाह! तुम्हारे पासस बहा कितन। इतने सारे घोड़े हैं। प्यारे घोडे है। 30..... ........*****...odisatoris. 190TRAINIIIIIIIIIIIIIIIIIIIranian... AAAAAAA.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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