Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust
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समण-संघस्स भगवओ अंजलि करिअ
सीसे
सव्वं
खमावइत्ता खमामि
सव्वस्स अहयंपि
श्रमण-संघ-साधु समुदाय (चतु-विधसंघ) भगवान को। दोनों हाथ जोड़ करके। शीश पर लगा कर। सबको। खमा करके। खमता हूं, क्षमा करता हूं। सबको। मैं भी। सभी। जीव राशि से। भाव से। धर्म में चित्त को स्थिर करके। सबको। खमा करके।
खमता हूं, क्षमा करता हूं। * खामेमि सव्वे जीवा-क्षमापना पाठ *
क्षमा चाहता हूं।
सव्वस्स जीव-रासिस्स भावओ धम्मं निहिय-नियचित्तो
सव्वं
खमावइत्ता खमामि
खामेमि
सब
सव्व जीवे सव्वे जीवा
खमंतु
जीव सब जीवों को क्षमा करो। मुझको। मित्रता है।
मित्ति
मेरी।
सभी प्राणियों से।
सव्व भूएसु वेरं मज्झं
शत्रुता। मेरी।
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