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केणइ एवमहं (एवं अहं) आलोइय निंदिय गरिहिय दुगुंछिय
तिविहेणं पडिक्कंतो वंदामि जिण-चउव्वीसं
नहीं। किसी के साथ। इस प्रकार मैं। आलोचना करके। आत्म साक्षी से निंदा करके। गुरु साक्षी से गर्दा करके। जुगुप्सा (ग्लानि-घृणा) करके। सम्यक् प्रकार से। मन, वचन, काया द्वारा। पापों से निवृत्त होता हुआ। वंदना करता हूं। 24 अरिहंत भगवान को। * समुच्चय पच्चक्खाण का पाठ * गांठ सहित यानी जब तक गांठ बंधी रखू, तब तक। मुट्ठी सहित अर्थात् जब तक मैं मुट्ठी बन्द रखू, तब तक। नमस्कार मंत्र बोल कर सूर्योदय से लेकर एक मुहूर्त (48 मिनट) तक त्याग। एक प्रहर का त्याग। डेढ़ प्रहर का त्याग। निम्न आगारों को छोड़कर बिना उपयोग के कोई वस्तु सेवन की हो।
गंठिसहियं मुट्ठिसहियं नमुक्कारसहियं
पोरिसियं साड्ढ-पोरिसियं अन्नत्थणाभोगेणं (अन्नत्थ अणाभोगेणं) सहससागारेणं
महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं
अकस्मात् जैसे पानी बरसता हो और मुख में छींटे पड़ जाये, या छाछ बिलोते समय मुंह में छींटे पड़ जाये। महापरुषों की आज्ञा से अर्थात गरुजनके निमित्त से त्याग का भंग करना पड़े। सब प्रकार की शारीरिक, मानसिक निरोगता रहे तब तक अर्थात् शरीर में भयंकर रोग हो जाये तो दवाई आदि का आगार है। त्याग करता हूं।
वोसिरामि
21113.
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