Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 116
________________ मरणासंसप्पओगे कामभोगासंसप्पओगे तस्स धम्मस्स केवलिपण्णत्तस्स ओि आराहणाए विरओमि विराहणाए तिविहेणं पडिक्कंतो वंदामि जिण - चउव्वीसं आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मि कुल गणे य जे तक तक ती केई कसाया सव्वे तिविहेणं खाम सव्वस्स Jain Education International कष्ट होने पर शीघ्र मरने की इच्छा करना । कामभोग की अभिलाषा करना । * तस्स धम्मस्स उस धर्म की जो । केवली भाषित है उस ओर । उद्यत हुआ हूं। आराधना करने के लिए। विरत (अलग) होता हूं। विराधना से । मन, वचन, काया द्वारा । निवृत्त होता हुआ । वन्दना करता हूं। चौबीस तीर्थंकरों को। * आयरिय उवज्झाए का पाठ आचार्य महाराज । उपाध्याय महाराज । शिष्य। साधर्मिक। एक आचार्य का शिष्य समुदाय । गण समूह पर। जो । मैंने। कुछ । क्रोध आदि कषाय किया हो तो। सबको। तीन योग (मन, वचन, काया) से । माता हूं। क्षमा चाहता हूं। (इसी प्रकार) सभी। 111 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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