Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 124
________________ गया और अंधेरे में ही कुकर्म करके चला गया। विधि की विचित्रता से दीवार से दब कर मरा हुआ रूपसेन का जीव सुनंदा की कुक्षि में ही उत्पन्न हुआ। कुछ समय बीतने पर सुनंदा के शरीर पर गर्भवती के लक्षण दासियों को नजर आने लगे। दासियों ने सुनंदा को क्षार आदि गर्भ गलाने की दवाइयां पिलाई फलस्वरूप रूपसने का जीव भयंकर वेदना प्राप्त कर कुक्षि में ही मर गया। वहां से मरकर वह सर्पिणी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ और काल क्रम से सर्प बना। इधर सुनंदा का विवाह क्षितिप्रतिष्ठित नगर के राजा के साथ हो गया। एक दिन राजा-रानी बगीचे में घूमने-फिरने के लिए गए। वहां अचानक (रूपसेन का जीव) सर्प आ पहुंचा। सुनंदा को देखते ही सर्प की दृष्टि उस पर स्थिर हो गई। सर्प को इस प्रकार स्थिर दृष्टि वाला देखकर सुनंदा भयभीत हो गई। उसके पति ने सर्प को - शस्त्र से मरवा डाला। सर्प आर्तध्यान में मर गया। __ वहां से मरकर रूपसेन का जीव कौए के रूप में उत्पन्न हुआ। एक दिन बगीचे में राजा, रानी के साथ संगीत का आनंद ले रहा था। इतने में कौआ सुनंदा को देखकर रागवशात् जोर-जोर से हर्ष पूर्वक काँव-काँव करने लगा। अनेक बार उड़ाने के पर भी वह पुनः पुनः आकर वहीं बैठ जाता था। राजा ने क्रोध में आकर उसे शस्त्र से मरवा दिया। कौआ मरकर हंस के रूप में उत्पन्न हुआ। एक कौवे से उस हंस की मित्रता हो गई। एक दिन राजा और उसकी रानी सुनंदा एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। हंस की दृष्टि सुनंदा पर पड़ते ही उसे देखने में हंस मगन हो गया। कौआ तो वीट करके उड़ गया। राजा ने ऊपर हंस को देखते ही गोली मारकर उसे खत्म कर दिया। एकरूपसेन के भव में आत्मा ने आँख केपाप से मोह केसंस्कार डाले थे। वे पीछे के भवों में उदित हुए और अंत में कुमृत्युसे मरना पड़ा। ___ वह हंस मरकर छठे भव में हरिणी की कुक्षि में हरिण के रूप में उत्पन्न हुआ। एक बार राजा अपनी पत्नी के साथ जंगल में शिकार करने गया। घोड़े पर सवार होकर राजा रानी हरिण के पीछे दौड़े। हरिण तीव्र गति से दौड़ रहा था। इतने में उसकी दृष्टि सुनंदा के चेहरे पर पड़ी। दृष्टि पड़ते ही हरिण स्थिर हो गया। उसकी कोमल काया पर राजा ने बाण चलाया और 119.xxxm Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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