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वालों, सम्यग्दृष्टि जीवों को समाधि पहुंचाने वालों (ऐसे देवों की आराधना ) के निमित्त मैं कायोत्सर्ग करता
हूं।
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निसीहि अहोकायं, काय संफासं खमणिज्जो भे! किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे! दिवसो वइक्कंतो ? जत्ता भे ? जवणिज्जं च भे? खामि खमासमणो! देवसिअं वइक्कमं। आवस्सिआए पडिक्कमामि । खासमा देवसिआए
आसायणाए, तित्तीसन्नयराए, जं किंचि मिच्छाए, मण-दुक्कडाए वयदुक्कडाए काय-दुक्कडाए, कोहाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए,
मायाए लोभाए,
सव्वधम्माइक्कमणाए, आसायणाए, जो मे अइयारो कओ, तस्स खमासमणो! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं बोसिरामि ।।
शब्दार्थ
माणाए
* सुगुरु वंदन सूत्र
इच्छाम खमासमणो! वंदिउं जावणिज्जाए, निसीहिआए || अणुजाणह मे मिउग्गहं ||
इच्छामि - मैं चाहता हूं।
खमासमणो - हे क्षमाश्रमण गुरुदेव ।
वंदिउं - वन्दन करना।
जावणिज्जा- अपनी शक्ति के अनुसार ।
निसीहिआए - अन्य सब प्रकार के कार्यों को छोड़कर। अणुजाणह - आज्ञा प्रदान करो।
- मुझे
मिउग्गहं परिमित अवग्रह में आने के लिए, मर्यादित
-
भूमि में प्रवेश करने के लिए
निसीहि - अशुभ व्यापारों के त्यागपूर्वक ।
अहोकायं - आपके चरणों को।
काय - संफासं - मैं उत्तमांग (मस्तक) से स्पर्श करता हूं। खमणिज्जो - क्षमा करें।
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