________________
नाम कर्म की प्रकृतियों में तीर्थंकर नाम कर्म बहुत ही महत्वपूर्ण है, अरिहंत, सिद्ध, आचार्य आदि वीस पदों (बीस स्थानक तप) की विधिपूर्वक आराधना, अत्यन्त आदर बहुमान और ‘सवी जीव करूं शासन
भावना के साथ करने से तीर्थंकर नाम कर्म का बंध होता हैं। अतएव उसके बंध हेतुओं को
अलग से बताया जा रहा है। 1.अरिहंत पद :-घातिकर्मो का नाश करने वाले इन्द्रादि द्वारा वन्दनीय, अनन्त ज्ञान-दर्शन-सम्पन्न, चौंतीस अतिशय और पैंतीस वाणी के गुणों से युक्त अरिहंत भगवान के गुणों की स्तुति और विनय भक्ति करता हुआ जीव उत्कृष्ट रसायन आने पर तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता हैं। 2. सिद्ध पद :- समस्त कर्मों का नष्ट कर लोकाग्र पर विराजमान सिद्ध भगवान की भक्ति एवं उनके
गुणों का चिंतन करने से । 3. प्रवचन पद :- द्वादशांगी रूप श्रुत की भक्ति करता हुआ जीव भावना की उत्कृष्टता होने पर तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता है। 4. आचार्य पद :- 36 गुणों के धारक आचार्य महाराज की भक्ति, उनके गुणानुवाद एवं आहार, वस्त्रादि द्वारा सेवा करता हुआ जीव उत्कृष्ट भावना आने पद तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता हैं। 5. स्थविर पद :- जाति (वय) स्थविर (60 वर्ष की वय से अधिक उम्र वाले) श्रुत-स्थविर (स्थानांग और समवायांग के धारक) और प्रव्रज्या (दीक्षा) स्थविर (20 वर्ष की दीक्षा पर्यायवाले) की भक्ति, स्तुति, वन्दना, आदि करने से। 6. उपाध्याय पद :- बहुश्रुत (सूत्र, अर्थ और तदुभय युक्त) मुनिराज की भक्ति करने से। 7.साधु पद :- पंच महाव्रतधारी बाईस परिषहों को समभावपूर्वक सहन करने वाले सत्ताईस गुणों के धारक साधु मुनिराज की भक्ति
उपाध्याय करने से।
मति 8. ज्ञान पद :- निरन्तर सतत तत्वाभ्यास करने से।
ज्ञान
मनः 9. दर्शन पद :- सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा द्वारा प्ररूपित तत्वों के
पर्यय। यर्थाथ स्वरूप को मानने से देव-गुरू-धर्म पर सच्ची श्रद्धा रखने से ज्ञान
अवधि एवं सम्यक्त्व का निरतिचार पालन करने से।
ज्ञान
ज्ञानपद दर्शनपद
पवरनपद्ध
TTC
SIGO
-191Mmm....
Jain Education International
For Personal & Private use only
www.jainelibrary.org