Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 58
________________ कायोत्सर्ग * कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग में काय और उत्सर्ग ये दो शब्द है। जिसका तात्पर्य - काय (शरीर) का त्याग करना। लेकिन जीवित रहते हुए शरीर का त्याग संभव नहीं । यहाँ शरीर त्याग का अर्थ है शारीरिक चंचलता एवं देहासक्ति का त्याग। किसी सीमित समय के लिए शरीर के उपर रहे हुए ममत्व का परित्याग कर शारीरिक क्रियाओं की चंचलता को समाप्त करने का जो प्रयास किया जाता है, वह कायोत्सर्ग है। जैन साधना में प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व कायोत्सर्ग की परंपरा है। क्योंकि देह पर आसक्ति समाप्त - करने के लिए कायोत्सर्ग आवश्यक है। शरीर की ममता साधना के लिए सबसे बड़ी बाधा है। कायोत्सर्ग में शरीर की ममता कम होने से साधक शरीर को सजाने संवारने से हटकर आत्मभाव में लीन रहता है। प्रत्येक साधक को प्रातः और संध्या के समय यह चिंतन करना चाहिए कि यह शरीर अलग है और मैं अलग हूँ। मैं अजर, अमर, अविनाशी हूँ। यह शरीर क्षणभंगुर है। कमल - पत्र पर पडे हुए ओस बिंदु की तरह यह शरीर कब नष्ट हो जाये, कहा नहीं जा सकता । - प्रतिदिन जो कायोत्सर्ग किया जाता है, वह चेष्टा कायोत्सर्ग है अर्थात् उसमें एक निश्चित समय के लिए समग्र शारीरिक चंचलताओं का निरोध किया जाता है एवं उस समय शरीर पर होनेवाले उपसर्गों को समभावपूर्वक सहन किया जाता है। वह देह में रहकर देहातीत स्थिति में रहता है। आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने लिखा है - कायोत्सर्ग की स्थिति में साधक को यदि कोई भक्तिभाव से चंदन लगाये या कोई द्वेषपूर्वक कुल्हाडी से शरीर का छेदन करें, चाहे उसका जीवन रहे, या उसी क्षण मृत्यु आ जाए वह सब स्थितियों में यदि समभाव रखता है। तभी उसका कायोत्सर्ग विशुद्ध होता है। कायोत्सर्ग के समय देव, मानव और तिर्यञ्च संबंधी सभी प्रकार के उपसर्ग उपस्थित होने पर जो साधकं उन्हें समभावपूर्वक सहन करता है, उसीका कायोत्सर्ग वस्तुतः सही कायोत्सर्ग है। Jain Education International * कायोत्सर्ग की किया जा सकता है। 1. जिनमुद्रा में खडे होकर 2. पद्मासन या सुखासन में बैठकर 3. लेटकर कायोत्सर्ग की अवस्था में शरीर को शिथिल करने का प्रयास करना चाहिए। * कायोत्सर्ग के प्रकार :- कायोत्सर्ग के दो प्रकार बताये गये हैं मुद्रा :- सामान्यतः कायोत्सर्ग तीन मुद्राओं में 53 For Personal & Private Use Only :- 1. द्रव्य कायोत्सर्ग 2. www.jainelibrary.org

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