Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 71
________________ 1. जल पूजा :- हे निर्मल देवाधिदेव ! आपके तो द्रव्य मैल और भाव मैल दोनों ही धुल गये है। आपको तो अभिषेक कि कोई आवश्यकता नहीं है। किंतु मेरे नाथ ! जल पूजा के द्वारा कर्म मल को धोकर निर्मल बनना चाहता हूँ। 2. चंदन पूजा :- हे प्रभु ! मोह का नाश करके आपने अपनी आत्मा में शीतलता प्रसारित की है किंतु मेरे नाथ मेरी आत्मा तो विषय कषायों की अग्नि ज्वाला में जल रही है। अतः अनामिका अंगुली से आपकी चंदन पूजा करते हुए कामना करता हूँ। प्रभु ! मेरी अंतरात्मा में विषयकषाय विनष्ट हो जाए और मेरी आत्मा में चंदन जैसी समतारस की शीतलता फैल जाए। प्रभु के नौ अंगों के नाम इस प्रकार है। 1. अंगूठा 2. घुटना 3. कलाई 4. कंधा 5. शिखा (सिर) 6. ललाट 7. कंठ 8. हृदय 9. नाभी। इनकी पूजा करते समय क्या भाव हमारे मन में उत्पन्न होने चाहिए, उनका वर्णन निम्नलिखित है। 1. अंगूठा (चरण पूजा): जलभरी संपुट पत्रमां, युगलिक नर पूजंत। ऋषभ चरण अंगूठडे, दायक भवजल अंत।। हे सर्वज्ञदेव ! भगवान आदिनाथ के समय युगलिकों ने जो अपनी अगाध श्रद्धावश कमल का पात्र बनाकर उसमें जल भर कर भगवान के अंगूठे पर अभिषेक किया था । वे अज्ञानी जन भी पवित्र भावना व श्रद्धा के कारण इस चरण की पूजा कर परंपरा में इस संसार सागर से मुक्त हो गये थे। इसलिए हे प्रभु ! यह चरण संसार सागर से पार करानेवाला है। यह मानकर मैं आपके चरण की हूँ। चरण की पूजा करते समय विनयपूर्वक प्रभु के चरणों में समर्पण भाव रखते हुए भावना भावे कि मेरी आत्मा के प्रत्येक प्रदेश में आपकी अचिन्त्य शक्ति का विद्युत प्रवाह बहता रहे। 2. घुटना: जानु बले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश विदेश। खडा - खडा केवल लहयु, पूजो जानु नरेश।। पूजा 66 Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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