Book Title: Jain Dharm Darshan Part 04
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 54
________________ सौ वर्ष की दीक्षित साध्वी को भी आज के दीक्षित साधु को वंदन करने का विधान है। गृहस्थ साधकों के लिए सभी साधु - साध्वी तथा आयु में बडे गृहस्थ वंदनीय है। जिस वंदन में भक्ति नहीं हो, केवल भय, स्वार्थ, प्रलोभन, आकांक्षा, प्रतिष्ठा आदि भवानाएँ पनप रही हो, वह वंदन केवल द्रव्य वंदन है, भाव वंदन नहीं है। द्रव्य वंदन कितनी ही बार कर्मबंधन का कारण भी बन जाता है। पवित्र और निर्मल भावना के द्वारा किया गया वंदन ही सही वंदन है। आचार्य मलयगिरिने लिखा है द्रव्य वंदन मिथ्या दृष्टि भी करता है, किंतु भाव वंदन तो सम्यक्दृष्टि ही करता है। - आवश्यकचूर्णि में द्रव्य और भाव वंदन को स्पष्ट करने के लिए एक ऐतिहासिक प्रसंग दिया है - एक बार भगवान अरिष्टनेमि द्वारका नगरी पधारे। वहाँ श्री कृष्ण वासुदेव भगवान को वंदन करने के लिए पहुँचे। श्री कृष्ण के मन में एक विचार आया कि जब भी भगवान पधारते हैं, भगवान को वंदन करने के लिए मैं प्रतिदिन पहुँचता हूँ और जो विशिष्ट साधु है, उन्हीं को मैं वंदन कर भगवान का उपदेश सुनने के लिए बैठ जाता हूँ पर आज मैं सभी साधुओं को वंदन करूंगा और उसी तीव्र भावना से श्री कृष्ण वासुदेव ने 18000 साधुओं को विधिपूर्वक वंदना की। श्री कृष्ण के साथ उनका अनुचर वीरकौलिक भी था। ____उसने भी श्री कृष्ण की देखा-देखी सभी साधुओं को वंदन किया। जब भगवान से पूछा गया कि भगवन् ! श्री कृष्ण और वीरकौलिक दोनों ने साधुओं को वंदन किया है। दोनों की वंदन क्रिया भी समान रही। कृपा कर बताइए कि दोनों में से किसे अधिक लाभ हुआ और किसे कम लाभ हुआ? ___भगवान ने कहा - श्री कृष्ण ने द्रव्यवंदन के साथ भाव वंदन भी किया। द्रव्यवंदन के साथ ही उसमें भावों की उत्कृष्ट तीव्रता थी। जिसके फलस्वरुप श्रीकृष्ण ने क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया तथा तीर्थंकर नामकर्म का भी अनुबंधन किया। किंतु वीर कौलिक का वंदन भाव रहित वंदन था। उसने केवल द्रव्य वंदन ही किया। श्री कृष्ण को प्रसन्न करना ही उसका उद्देश्य था जिसके कारण उसे केवल श्रीकृष्ण की प्रसन्नता प्राप्त हुई। इसके अतिरिक्त कुछ भी लाभ न हुआ। द्रव्य वंदन अभव्य जीव भी करता है। उसकी वह क्रिया केवल यांत्रिक क्रिया होती है। उसे उससे किसी प्रकार का आध्यात्मिक लाभ नहीं होता। इसलिए वंदन के लिए द्रव्य और भाव दोनों ही आवश्यक है। 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only womjainelibrary.org

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