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देवों की परछाई नहीं एक स्थान पर एक विधवा स्त्री रहती थी। उसके एक लड़का था। वह जब छोटा था, तब से ही किसी का कुछ-किसी का कुछ चुरा लेता था। वह बड़ा होने पर डकैती डालने लगा, उस नगर में प्रतिदिन धर्मोपदेश होता था। उसकी माँ उससे कहती, "बेटा, चाहे किसी भी रास्ते से जाया करो, लेकिन उस रास्ते से कभी मत जाना जिस रास्ते में धर्मोपदेश होता है।" वह जानती थी कि यदि यह धर्म का एक भी शब्द सुन लेगा तो, चोरी का धन लाना उसी दिन से छोड़ देगा। एक दिन उस लड़के को एक ऐसा आवश्यक काम पड़ गया, कि उसको ऐसे ही रास्ते से निकलना पड़ा और उधर माता के वचनों का भी पालन करना था, बेचारा बुरी तरह चक्कर में पड़ गया। अब उसने दोनों कानों में अंगुली लगा ली और जहाँ उपदेश हो रहा था, वहाँ से भागने लगा। जैसे ही वह तेजी से भागा, एकदम उसको ठोकर लगी, वह गिर पड़ा, दोनों उँगली कानों से निकल पड़ी, उँगली निकलते ही उसने धर्म का एक शब्द सुना कि देवों के परछाई नहीं होती। कुछ समय बाद उसे कुछ ठग मिले, और उन ठगों ने उसे बहका दिया, कि रात को तुम्हारे घर पर एक देवी आयेगी। तुम उसकी पूजा करना और धनमाल देकर बिदा कर देना, वरना, वह तुम्हें मार डालेगी। वह बेचारा घबरा गया, और उसने उसकी पूजा के सब इंतजाम कर लिये। जब आधी रात हुई, तब उसको वह धर्म का शब्द याद आया। वह नि:शंक हो गया कि अगर परछाई नहीं पडती होगी, तो उसको पजंगा नहीं तो मारूँगा। समय होने पर एक सजी-धजी स्त्री आई। लड़के ने दूर से ही देख लिया, कि इसकी तो बहुत लम्बी परछाई है। यह देवी नहीं है। वह तो चुप होकर बैठ गया पर लड़के की माँ ने उसकी पूजा कर बीस हजार का माल उसको भेंट कर दिया। जब वह देवी चलने लगी तभी लड़के ने उसे पकड़ लिया और खूब मार लगाई। वह रोती चिल्लाती धन छोड़कर भाग गई। लड़के ने सोचा कि मैंने धर्म का सिर्फ एक शब्द सुना था, इसलिए आज घर बच गया। अगर शुरू से सुनता, तब यह जीवन पूर्णतः पाप से बच जाता। उस दिन से लड़के ने पाप करना छोड़ दिया और धर्मोपदेश सुनने जाने लगा। तुम भी अगर ठीक श्रद्धा से उपदेश सुनोगे तो कल्याण हो जायेगा। एक शब्द ने ही उस लड़के को पाप से छुड़ा दिया।
मूल्यवान मूर्ति एक समय एक व्यक्ति राजा के दरबार में तीन मूर्ति लेकर पहुंचा। देखने में वे एक जैसी बनी हुई थी। राजा के पूछने पर, वह राजा को मूर्ति के दाम बताने लगा। बोला, पहली मूर्ति की
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