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1. बकरा जैसा-जैसे बकरा राग की बात देखकर उसमें आसक्त हो जाता है, उसी प्रकार
श्रोता राग, रंग, विषयों की बात पसन्द करते हैं। 2. बिलाव जैसा-जिस प्रकार बिलाव को समझाने पर भी अपनी हिंसा प्रवृत्ति नहीं छोड़ता।
उसी प्रकार श्रोता को कितना भी उपदेश दिया जावे, लेकिन वह अपनी निकृष्ट प्रवृत्ति नहीं |
छोड़ता है। 3. भैंसा जैसा-जैसे भैंसा पानी तो थोड़ा पीता है, लेकिन पानी को गंदा अधिक करता है,
उसी प्रकार श्रोता सुनता तो कम है, लेकिन उथल-पुथल करके सभा (धर्म सभा) बिगाड़
देता है। 4. बगुला जैसा-जैसे बगुला एक टांग पर खड़ा रहता है, लेकिन मछली आते ही उसका
भक्षण कर लेता है, उसी प्रकार श्रोता गलती पकड़ने की ही बात खोजते हैं। 5. डांस जैसा-डांस खुद तो सोता नहीं, औरों को भी नहीं सोने देता, उसी प्रकार श्रोता स्वयं ___ तो सुनता नहीं और न ही दूसरों को सुनने देता है। 6. जोंक जैसा-जोंक गाय के स्तनों में चिपटकर भी दूध को न पीकर खून को ही पीती है,
उसी प्रकार श्रोता धर्मसभा में आकर भी वीतराग वाणी को छोड़कर, विषयों का ही पोषण
करते हैं। 7. छलनी जैसा-जैसे छलनी सार भूत आटा तो नीचे छोड़ देती है, भूसी को ग्रहण कर लेती
है, उसी प्रकार श्रोता भी वीतराग वाणी को ग्रहण नहीं करते, कहानी किस्सों को ही ग्रहण
करते हैं। 8. फूटे घड़े जैसा-जैसे फूटे घड़े में कितना भी पानी डालें, सब निकल जाता है, उसी प्रकार
श्रोता एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देता है। 9. पत्थर जैसा-जैसे पत्थर पर कितना ही पानी डालो लेकिन मुलायम नहीं होता, उसी प्रकार
श्रोता को कितना ही उपदेश दिया जाय वे कठोर ही रहते हैं। 10. सर्प जैसा-सर्प को कितना ही दूध पिलाओ लेकिन वह जहर ही उगलेगा, उसी प्रकार
श्रोता को कितना ही उपदेश दो वह विपरीत श्रद्धान ही करेगा। निम्न दृष्टान्त द्वारा श्रोता का महत्त्व समझा जा सकता है