Book Title: Itivuttakam
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

View full book text
Previous | Next

Page 19
________________ १।३।१० ] चित्त-तं सुखा संघस्स सामग्गी' समग्गानञ्च' नुग्गहो । समग्गरतो धम्मट्ठो योगक्खेमा न धंसति । संघं समग्गं* कत्वान कप्पं सग्गम्हि मोदतीति ॥ अयम्प अत्थो वृत्तो भगवता इति मे सुतन्ति ॥ ९ ॥ (२० -- दुट्ठचित्त- सुत्तं १।२११० ) वृत्तं तं भगवता वुत्तमरहता' ति मे सुतं - "इधाहं भिक्खवे ! एकच्चं पुग्गलं पट्ठचित्तं एवं चेतसा चेतो परिच्च पजानामि, इमम्हि चायं समये पुग्गलो कालं करेय्य यथा भतं निक्खितो एवं निरये । तं किस्स हेतु ? चित्तहिस्स भिक्खवे ! दुट्ठ ं । चेतोपदोसहेतु खो पन भिक्खवे ! एवमिधेकच्चे सत्ता कायस्स भेदा परम्मणा अपायं दुग्गतिं विनिपातं निरयं उपपज्जन्तीति । एतमत्थं भगवा अवोच । तत्थेतं इति वच्चति- पदुट्ठचित्तं त्वान एकच्चं इध पुग्गलं । एतमत्थञ्च व्याकासि बुद्धो भिक्खूनं सन्तिके ॥ इमम्हि चायं समये कालं कयिराथ पुग्गलो । निरयं उपपज्जेय्य चित्तहिस्स पदूसितं 10 ॥ यथा हरित्वा निक्खिपेय्य एवमेव तथाविधो । चेतो पदोसहेतू हि 11 सत्ता गच्छन्ति दुग्गतिन्ति ॥ अयम्प अत्थो वृत्तो भगवता इपि मे सुतन्ति ॥ १० ॥ वग्गो दुतियो ॥ ॥ O 1 सुखाय, B. 2 इ - सर्वत्र 3 ° चनुग्गहो, C. D.E.M.P.Pa.,Aa.; चानुग्गहो, B. 4 संघं समग्गं, M.; सङ्घसम, P. Pa. ; संघस्स स°, D. E.; संघसामग्गिं, C.; इ, B. २०. निरये' ति, P. Pa D.E. करियाथ, B; करिया, P. Pa Pa.; पटुस्सितं, B.C.M. हेतुति, B. [ ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 6 पन - त्यज्यते C.M. 7 उप्पज्ज : 3 8 faci ai, D.E. 9 कयिराथ, C.D.E.M.; 10 पदूसितं, D.E.P.; उ, 11 हेतुहि, C.D.E.M.; ति, P. Pa; www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112