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प्रसंग आये तो भी वे ग्लान नही होते है, दुःखी नही होते है, किन्तु वहाँ भी अपने आप में प्रकाशमान शुद्व परमात्मतत्वके दर्शनसे तृप्त रहा करते है।
वास्तवमें घृणाके योग्य – इस प्रकरणसे यह बात जानना चाहिए कि घृणा के योग्य यह शरीर नही है किन्तु जिस गंदे जीव के बसने से ये पवित्र स्कंध भी हड्डी, खून आदि रूपमें बन गए है वह जीव गंदा है। न आता कोई जीव तो शरीर बन कैसे जाता? शरीर की गंदगीका कारण वह अशुद्ध जीव है। अब जरा जीवमें भी निरखो तो वह जीव अशुद्ध नही है किन्तु जीवकी जो निजी विभामय बात है, अशुद्ध प्रकृति है, विभाव परिणति है वह गन्दी है। जीव तो जैसा सिद्व प्रभु है वैसा है, कोई अन्तर नही है, अन्तर मात्र परिणतिका है। तो जीवमे भी जो रागद्वेष मोह की परिणति है वह घृणा के योग्य है, यह शरीर यह पुरूष घृणाके योग्य नही है, मूल बात यह है। लेकिन इस प्रकरणमें परमतत्व ज्ञानियो की दृष्टि में आने वाली बातके लिए व्यवहारिक बात कही जा रही है।
अशुचि एवं अशुचिकर शरीर – यह शरीर अपवित्र है। इसमें चंदन लगा दो तो वह चंदन भी अपवित्र हो जाता है। दूसरा पुरूष किसी दूसरेके मस्तकपर लगे हुए चंदनको पोंछकर लगाना नही चाहता है। तेल लगा लो शरीर में, ज्यादा हो गया औश्र किसीसे कहो कि इस हमारे तैलको पोंछकर आप लगा लो तो कोई लगाना पसंद नही करता है। तैल में कोई गंदगी नही है, पर शरीर की गंदगी पाकर तैल अपवित्र हो गया। और तो जाने दो। कोई फूल की माला पहिन ले, फिर किसीसे कहे कि लो इसे आप पहिन लो तो कोई उस फूलकी माला को पहिनना पसंद नही करता है। जिस शरीर के सम्बंधको पाकर पवित्र पदार्थ भी पवित्र हो जाता है, उस शरीर से क्या प्रार्थना, करना, उस शरीर की क्या आशा रखना?
____ रूपकी बुनियाद – एक कथानक में आया है कि एक राजपुत्र शहरमें जा रहा था तो किसी महलके छज्जेपर खड़ी हुई सेठकी बहू उसकी दृष्टिमें आयी तो राजपुत्र उस सेठकी बहूपर आसक्त हो गया। कामकी वासना, संस्कार इतनी गंदी चीज है कि जो कामी पुरूष होते है उन्हे भोजन भी न सुहाये। उसने कुट्टनी को कहा कुट्टनी सेठकी बहूके पास पहुंच गयी, हाल बताया। वह सेठकी बहू बड़ी चतुर थी। उसने कहा ठीक है। 15 दिनके बाद अमुक दिन राजपुत्र आये। उस सेठकी बहुने इस 15 दिनमें क्या किया कि जुलाबकी दवाई खाकर दस्त जो कुछ भी लगे वह सब एक मटकेमें कर दिये। 15 दिन में वह मटका दस्तसे भर गया। वह बहू उन 15 दिनोमें बड़ी दुर्बल हो गयी। कुछ रूप कांति न रही। राजपुत्र आया, देखकर बड़ा दंग हुआ। तो बहू कहती है कि तुम जिसपर आसक्त थे उसे चलो हम तुम्हे दिखाएँ फिर तुम उससे प्रेम करो। उस राजपुत्र ने उसे जाकर देखा तो सारी दुर्गन्ध छा गयी, झट वह बगल हो गया और उल्टे पैर भागा। तो जिस चीजपर यह