Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

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Page 160
________________ वक्तव्य एक प्रसंग की भूमिका पुराण में एक कथानक पढ़ा होगा, आदिनाथ भगवान के पूर्व भवों में जब वज्रजंघ का भव था तो उनकी स्त्री श्रीमती हुई, और श्रीमती का विवाह जब न हुआ था तब उस श्रीमती कन्या ने देखा कि कबूतर और कबूतरी परस्पर में रम रहे है, इतना देखकर उसे कुछ जाति स्मरण हुआ । श्रीमति पहिले भव में देवी थी और वज्रजंघ ललितांग देव था । उस जातिस्मरण में उसे पिछले मौजो की सुध आयी और ललितागं देव का स्मरण हुआ तो उसने यह प्रतिज्ञा की कि वही जीव यदि मनुष्य भव में हो और सुयोग हो तो विवाह करूँगी अन्यथा ने करूँगी । अब पता कैसे लगे कि कौन है वह मनुष्य जो ललितांग देव था । श्रीमती को जातिस्मरण हुआ और उसे देव के समय की एक घटना भी चित्त में बनायी, सो चित्र पट में अनेक घटनाएँ लिखी व वह विशिष्ट घटना भी लिखी और कितनी ही परीक्षा के लिए झूठी घटनाँए भी लिखी । तो पहिले समय में ऐसी प्रथा थी। उस चित्रावली को मन्दिर के द्वार पर रख दिया गया और एक धाय के सुपुर्द कर दिया गया। उस चित्रावली में कुछ पहेली बनी हुई थी, ताकि जो शंकाओ को समाधान कर दे, उसे समझ ले कि यह ही वास्तव में पूर्वभव का पति था । बहुत से मनुष्य आये, झूठे कपटी भी आए और कुछ से कुछ बताकर अपना रौब जमाने लगे, पर किसी की दाल न गली । देवगति में कामलीला का एक प्रसंग - वज्रजंघ स्वंय एक बार वहाँ से निकला और चित्रावली को देखा तो एक चित्र वहाँ ऐसा था कि ललितांगदेव के सिर में देवी ने जो लात मारी थी। उसका दाग बना था । उसको देखकर उसे भी स्मरण हो आया और वह प्रेम एवं वियोग की पीड़ा से बेहोश हो गया। होश होने पर धाय ने पूछा तो बताया कि यह चित्त हमारे पूर्वभव के देव के समय की घटना का है। यह देव जब देवी के साथ यथेष्ट बिहार करके रम रहा था तो किसी समय देवी अप्रसन्न हो गयी और उसने अपने पति ललितांगदेव के सिर में लात लगायी थी । जो मनुष्य भव में अप्रिय घटनायं होती है ऐसी अप्रिय घटनाये देवगति में भी हुआ करती है। जब स्वंय चित्त विषयवासना से व्याकुल है तो वहाँ बाह्रा पदार्थ भी रमणीक लगते है और वहाँ अनेक उपद्रव सहने पड़ते है जब चित्त ज्ञान में है तो फिर ये बाह्रा पदार्थ उसे रम्य नही मालूम होते है । ज्ञानी का चिन्तन और यत्न विचार कर रहे है ज्ञानी पुरूष कि ये भोग पराधीन है, मिटते है और जब तक भी विषय भोग बन रहे है तब तक भी दुःख बराबर चलता रहता है। और फिर इसमें नफा क्या मिलता है, केवल पापो का बंध होता है। ऐसे सुख में ज्ञानियों के आदर बुद्धि नही होती है । तत्वज्ञान में ज्यों ज्यों समाया जाता है त्यो त्यो ये सर्व विषय सुलभ भी हो तो भी रूचिकर नही मालूम होते जैसे सूखी जमीन मछलियों के प्राणो का घात करने वाली है और उन मछलियों को आग मिल जाये तो फिर उन मछनियों के भवितत्य की बात ही क्या कही जाय? तुरन्त मछलियाँ अग्नि में मृत्यु को प्राप्त - 160

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