Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

View full book text
Previous | Next

Page 226
________________ तो अन्तर एक श्रद्वा की पद्वति का रहा। सप्तम नरक का नारकी जीव तो सम्यक्त्व उत्पन्न कर सकता है और भोग विषयो में आसक्त जीव मनुष्य है और बड़ी प्रतिष्ठा, यश अनेक बातें हो, पर विषयो का व्यामोही पुरूष इस सम्यक्त्व का अनुभव नही कर सकता है। श्रद्वा एक मौलिक साधन है उन्नति के पथ में बढ़ने का। पार्थक्य प्रतिबोध - यहाँ इतना ही समझना है संक्षेपरूप में कि जीव जुदे है पुद्गल जुदे हे। ये सामने दो अंगुली है, ये दोनो अंगुली जुदी जुदी है क्योकि यह अनामिका अंगुली मध्यमा रूप नही हो सकती और मध्यमा अंगुली अनामिका अंगुली रूप नही हो सकती। इस कारण हम जानते है कि ये दो अंगुलियाँ जुदी-जुदी है। ऐसे ही ये दो मनुष्य जुदे-जुदे है क्योकि यह एक मनुष्य दूसरे मनुष्यरूप नही हो पाता और यह दूसरा मनुष्य इस मनुष्य रूप नही हो पाता यही तो भिन्नता समझने का साधन है। तो ये समस्त पुदगल प्रसंग जिनकें व्यामोह में विपत्ति और विडम्बना रहती है, ये अचेतन है और यह मै जीव चेतन हूं। इस प्रकार का उनका आसाधारणस्वरूप जानना, बस यही एक हेय पदार्थ से अलग होकर उपादेय पदार्थ में लगने का साधन है। इसके अतिरिक्त अन्य जो कुछ भी कहा जाता है वह सब इसका विस्तार है। सात तत्व जीव पुद्गल के विस्तार इसके अतिरिक्त अन्य जो कुछ भी कहा जाता है वह सब इसका विस्तार है। सात तत्व जीव पुदगल के विस्तार है, तीन लोक का वर्णन यह जीव पुदगल का विस्तार ह। सर्वत्र जानना इतना है कि यह मैं ज्ञानानन्दस्वरूप आत्मा जुदा हूं और ये देहादिक पुद्गल मुझसे जुदे है। यथार्थ प्रतिबोध के बिना शान्ति का अनुपाय - भैया! शान्ति यथार्थ ज्ञान बिना नही मिल सकती, चाहे कैसा ही कुटुम्ब मिले, कितनी ही धन सम्पदा मिले, पर अपना ज्ञानानन्द स्वभाव यह मैं हूं ऐसी प्रतिति के बिना संतोष हो ही नहीं सकता। कहाँ संतोष करोगे? तृष्णा के फेर में अशान्ति – एक सेठ जी एक बढ़ई ये दोनो पास-पास के घर में रहते थे। बढ़ई दो रूपये रोज कमाता था और सब खर्च करके खूब खाता पीता था और सेठ सैकड़ो रूपयो कमाता था और दाल रोटी का ही रोज-रोज उसके यहाँ भोजन होता था। सेठानी सेठजी से कहती है कि यह गरीब तो राज पकवान खाता है और आपके घर में दाल रोटी ही बनती है तो सेठ जी बोले कि अभी तू भोली है, जानती नही है यह बंढ़ई अभी निन्यानवे के फेर मे नही पड़ा है। निन्यानवे का फैर कैसा? सेठ जी एक थैली में 99 रूपये रखकर रात्रि को बढ़ई के घर में डाल दिये। सोचा कि एक बार 99 रूपये जाये तो जाये, सदा के लिए झंझट तो मिटे, घर की लड़ाई तो मिटे । बढ़ई ने सुबह थैली देखी तो बड़ा खुश हुआ। गिनने लगा रूपये-एक दो, 10, 20, 50, 70, 80, 90, 98, और 99| अरे भगवान ने सुनी तो खूब है मगर एक रूपया काट लिया। कुछ हर्ज नही, हम आज के दिन आधा ही खर्च करेगें, 1 रूपये उसमें मिला देंगे तो 100) हो जायेगे। मिला दिया। अब 100) 226

Loading...

Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230 231