Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

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Page 227
________________ हो गये। सोचा कि हमारा पड़ौसी तो हजारपति है उसको बहुत सुख है, अब वह जोड़ने के चक्कर में पड़ गया। सो हजार जोड़ने की चिन्ता लग गई। अब तो वह दो रूपये काम तो चार आने में ही खाने पीने का खर्चा चला ले। अब जब हालत हो गयी तो सेठ कहता है सेठानी से कि देख अब बढ़ई के यहां क्या हो रहा है? तो सेठानी ने बताया कि अब तो वहाँ बड़ा बुरा हाल है। बस यही तो है निन्यानवे का फेर । शान्ति का स्थान - यह अनुमान तो कर लो कि कहाँ शान्ति मिलेगी? निर्लेप आकिञचन्य ज्ञानानन्दस्वरूपमात्र मै हूं, मेरा कही कुछ नही है, ऐसा अनुभव करने में ही शान्ति मिलेगी, अन्यत्र नही । इसलिए कहा है कि तत्व का संग्रह इतना ही है। पुद्गल जुदे है और मैं इस पुद्गल से जुदा हूं। इष्टोपदेशमिति सम्यगधीत्य विद्वान्, मानापमानसमतां स्वमताद्वितन्य । मुक्ताग्रहो विनिवसन्स्वजनेऽजने व मुक्तिश्रियं निरूपमामुपयाति भव्यः । 151 ।। इष्टोपदेश के अध्ययन का फल यह इष्टोपदेश ग्रन्थ का अंतिम छंद है। इस छंद मे इस ग्रन्थ के अध्ययन का फल बताया है । ग्रन्थ का नाम इष्टोपदेश । जो आत्मा को इष्ट है अर्थात् आत्महित करने वाला है ऐसे तत्व का उपदेश, तत्व की दृष्टि और तत्व के ग्रहण का उपाय जिसमे बताया है इस ग्रन्थ की समाप्ति पर यह अन्तिम छंद कहा जा रहा है। किसी भी विषय को ग्रन्थ को उपदेश को, जानने का साक्षात् फल अज्ञाननिवृत्ति है। ज्ञान के फल चार बताए गये है अज्ञान निवृत्ति, हेय का त्याग करना, उपादेय का ग्रहण करना व उपेक्षा हो जाना । ज्ञान के फल चार होते है जिसमें अज्ञाननिवृत्ति तो सब में रहता है। चाहे हेय का त्याग रूप फल पाये, चाहे उपादेय का ग्रहणरूप फल पाये और चाहे उपेक्षा पाये, अज्ञाननिवृत्ति सब में फल मिलेगा। जिस तत्व का परिज्ञान कर रहे है, जब तक हमारा अज्ञान दूर न हो जाय तब तक हेय को छोड़ेगा कैसे कोई, अथवा विषयो को त्यागेगा कैसे या उदासीनता भी कैसे बनेगी? जगत के जीव अज्ञान अंधकार पड़े है। अज्ञान अंधकार यही है कि वस्तु है और भांति व जानता है और भांति, यही अज्ञानन अंधकार है। - कल्पित चतुराई - यों तो भैया! अपनी कल्पना में अपनी बड़ी चतुराई जंच रही है। दस आदमियों में हम अच्छा बोलते है, हम अनेक कलाये जानते हे और अनेको से बहुत - बहुत चतुराई के काम कर डालते है, इतनी बड़ी सम्पदा बना ली है, ऐसा मिल और फैक्टरी खाल ली है। हम तो चतुर है और बड़े ज्ञानवान है। सबको अपने आप में अपनी चतुराई नजर आती है, और यों अलंकार में कह लो कि मान लो दुनिया में कुल डेढ़ अक्ल हो तो प्रत्येक मनुष्य एक अक्ल तो अपने में सोचता है और आधी अक्ल दुनिया के सब लोगो में मानता है। अपनी चतुराई सभी मानतें है । भिखारी भी भीख मांग लेने में अपनी 227

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