Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ आत्मोत्थ शुद्ध आनन्द का परिणाम - पूर्व श्लोको में यह कहा गया था कि जो योगी न तो प्रवत्ति रूप व्यवहार कर रहा है और न निवृत्ति रूप भी व्यवहार कर रहा है इन दोनो व्यवहार से ऊपर स्वरक्षित होकर जब आत्मा के उपयोग में उपयुक्त होता है उस समय इस अपूर्व योग के प्रसाद से उस योगी के अपूर्व आनन्द प्रकट होता है। अब श्लोक में यह कहा जा रहा है कि उस आनन्द का फल क्या मिलता है आनन्द भव-भव के बाँधे हुए प्रबल कर्मरूपी ईधन को जला डालता है। जैसे ईघन कितने ही दिनो से ढेर करके संचित किया जाय, उस समस्त ईधन को जलाने में अग्नि समर्थ है इस ही प्रकार विकल्पो से जितने भी कर्म बंधन संचित किये है उन कर्मो को नष्ट करने यह योगी का आनन्द समर्थ है। अध्यात्मयोग की आनन्दमग्नता से कर्मप्रक्षय - भैया! बाहा में साधुजनों की तपस्या कायक्लेशरूप दिखती है लोगो को कि ये बहुत उपवास करते है, एक बार भोजन पान करते है आदि कितनी कठिन विपत्तियाँ सहते है? लोगो को दिखता है कि ये कष्ट सह रहें हे पर वे कष्ट सह रहे हो तो उनके कर्म नष्ट नही हो सकते। वे तो किसी अपूर्व आनन्द में मग्न हो रहे है जिस आनन्द के द्वारा वे कर्म नष्ट हो जाते है, जो हम आपके आत्मा में चिकाल से बंधे है। कर्म शब्द के अर्थ पर दृष्टि डालो। कर्म शब्द के दो अर्थ है एक तो जो आत्मा के द्वारा किया जाय उसका नाम कर्म (भाव कर्म) है। दूसरे इस कर्म के निमित्त से जो कार्माणवर्गणा कर्मरूप होती वह कर्म है। भावकर्म और द्रव्यकर्म - यह जीव जो कुछ भी करता है, उसका नाम कर्म है। जैसे रागद्वेष विकल्प संकल्प मोह ये सब कर्म कहलोते है, इसका नाम भावकर्म है। भावकर्म तो जिस समय किया उस ही समय रहा, बाद में नही रहते। क्योकि भावकर्म जीव के एक समय की परिणति है, और उपयोग में आने की दृष्टि में अन्तर्मुहूर्त की परिणति है। वह परिणति दूसरे क्षण नही रहती। दूसरे क्षण अन्य रागद्वेष मोह उत्पन्न हो जाते है। प्रत्येक जीव के जिस समय रागद्वेष होता है वैसा परिणमन दूसरे क्षण नही रहता। इस कारण भावकर्म तो अगले क्षण नही रहते, नये-नये भाव उत्पन्न होते रहते है, किन्तु उस नवीन क्षणिक भावके कारण जो कर्म बनते है, ज्ञानावरणादिक कर्म बनते है उनमें कितने ही कर्म अनगिनते अरबो, खरबो वर्ष तक इसके साथ रहते है, और वे उतने वर्षों तक जीव को सताने के कारण बन रहे है। एक क्षण की गल्ती से अरबो खरबो वर्ष तक जीव को कष्ट सहना पड़ता है। कर्मस्थिति का समर्थन - जैसे कोई पुरूष रसना इन्द्रिया के स्वाद में आकर किसी हानिकारक चीज को खा जाय तो खाने में भागने में कितना समय लगा? दो तीन मिनट का, किन्तु उससे जो दर्द बनेगा, रोग बनेगा वह भोगना पड़ेगा घंटो । ऐसे ही रागद्वेष करना तो आसान है, स्वच्छन्दता है, जो मन मे आए सो कर लो, पुण्य का उदय है। जिस 214

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231