Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

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Page 201
________________ अंतरंग में पहुचती है ऐसे व्यवहार नीति कहती है। तो वास्तविक मायने में कुछ औरो का भी उपकार सम्भव है। समागम की विनश्वरता का ध्यान - भेया ! अपन सबको मुख्य दृष्टि यह रखना चाहिए कि मुझे तो अपना भला करना है। ये सब समागम किसी न किसी दिन बिछुड़ेगे। यहाँ मेरा कुछ नही है। अपनी साधना निर्विघ्न बनी रहे, इसके लिए कमजोर अवस्था में गृहस्थी स्वीकार करनी पड़ी है और कर रहे है, गृहस्थ की पदवी में करना चाहिए किन्तु यथार्थ ज्ञान से यदि अपन हट गए तो मनुष्य जन्म की सफलता न समझिए। देहादिक परपदार्थ पर ही है, इनकी प्रीति से, आसक्ति से केवल क्लेश ही है। इस शरीर की सेवा करनी पड़ती है। शरीर स्वस्थ रहे तो हम धार्मिक व्यवहार करने में समर्थ रहेगे और हम अपनी ज्ञानदृष्टि रख सकेगे। ज्ञान हमने अपना शुद्ध रख पाया तो अंतः सयंम बनेगा और उससे आत्महित होगा। ज्ञानी पुरूष समस्त क्रियावो को करके भी उसमें किसी न किसी ढगं से आत्महित का ही प्रयोजन रखता है। हम प्रभु की भक्ति तो करे, पूजन बंदन करे और चित्त में उनका आदर्श न समझ पाये, अपने अंतरंग से यह ध्वनि न बन सके कि है प्रभो! करने लायक बात तो यही है जो आपने की। मुझे भी यही स्थिति मिले तो संकट छूट सकेगें। यदि ऐसी अन्तर्ध्वनि न निकल सके ता वंदन पूजन मोक्षमार्ग के संदर्भ में क्या लाभ पाया ? निज स्वरूप की प्रतीति - निर्णय रखिये पक्का कि जो परपदार्थ है वे पर ही है, उनके आकर्षण से, उनकी प्रीति से क्लेश ही होगा। जो भीतर में चित्त रंग गया हे, मोह और लाभ के उस रंग को धोने की बात कही जा रही है। गृहस्थी में रह रहे है, ठीक है, पर परपदार्थ में जो मोह का रंग रँगा हआ है, अंतर मे जो यह श्रद्वा बनी है कि मेरे तो सर्वस्व ये ही सब है, इनसे ही हित है, बड़प्पन है, ये ही मेरी जान है, ऐसा जो मोह का रंग चढ़ा हुआ हे जो कि बिल्कुल व्यर्थ है, उसे मेटिये। कुछ दिन की बात है, छोडकर सब जाना ही पड़ेगा। पर से उपेक्षा करेक आत्मरूचि बढ़ा लो। यह तो अपने हित की बात है किसी दूसरे को सुनना नही है, घर कुटुम्ब के लोगो से कुछ कहने की जरूरत नही है कि तुम सब पर हो, नरक निगोद की खान हो, तुम्हारी प्रीति से दुर्गति ही होगी, ये तो लड़ाई के उपाय है। किसी से कुछ कहने की बात नही कही जा रही है किन्तु अपने चित्त में सही ज्ञान तो जगाओ। बात जो हो उसे मान लो, बड़ा आनन्द होगा, आपका बोझ दूर हो जायगा। निर्भार के अवलम्बन में भार का हटाव – भैया ! मोह को जो बोझ लदा है, जिससे शान्ति का मार्ग नजर नहीं आता है उस बोझ के हटाने में कुछ कठिनाई मालूम हो रही है क्या? आज एक कुटी में इन अनन्त जीवो में से कोई दो चार जीव आ गए। ये दो चार जीव न आते, कोई और ही आते तो उन्हें भी अपना मानने की आदत थी। जिसे अपना 201

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