Book Title: Ishtopadesh
Author(s): Sahajanand Maharaj
Publisher: Sahajanand Shastramala Merath

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Page 195
________________ चारूदत्त को साथ लेकर गया। पहिले से ही प्रोग्राम था। सामने से कोई हाथी छुड़वाया गया। उससे कैसे बचें सो एक वैश्या के घर वे दोना चले गए। जान तो बचाना था। वहाँ जाकर शंतरंज आदि खिलवाया और जो जो कुछ खटपट है उनमें भुलाया। यह चतुर था, यह भी खेल में शामिल हो गया। बस स्नेह का बधन बँध गया। सबसे बड़ा बन्धन है स्नेह के बन्धन से जकड़ देना। स्नेह बन्धन में विडम्बनाये - एक दोहा में कहते है - हाले फूले वे फिरै होत हमारो व्याव। तुलसी गाय बजाय के देत काठ में पाव । केवल एक विवाह की बात नही है। किसी से किस ही प्रकार स्नेह का बन्धन हो जाय तो वह जीवन में शल्य की तरह दुःख देता है। परिचय हो गया ना अब । बोलचाल रहन-सहन सब होने से स्नेह बन गया। अब इस मोही की दृष्टि में जगत के अन्य जीव कुछ नही लगते और ये एक दो जीव इसके लिए सर्व कुछ है। घर का आदमी जिससे बन्धन है, बीमार पड़ जाए तो करजा लेकर भी उसका उपचार करता है। घर को तो सब लगा ही देगा और कदाचित् कोई पड़ौसी बीमार हो जाए तो कुछ भी लगा सके ऐसी हिम्मत भी नही कर पाता। कोई धर्मात्मा बीमार हो जाय तो उसके लिए कुछ भी नही है। यदि कुछ थोड़ा बहुत लगाया जाता तो लोकलाज से, पर जैसे भीतर से एक रूचि उत्पन्न होकर घर वाले की सेवा की जाती है इस प्रकार अंतरंग से रूचि उत्पन्न होकर किसी धर्मात्माजनों की सेवा की जा सके, ऐसा नही हो पाता है। ये सब मोह के नचाये हुए कहाँ-कहाँ क्या-क्या नाच नचते है? रहना कुछ नही है साथ में। चंद दिनो की चाँदनी है, छोड़ना सब कुछ पड़ता है, पर उन ही चंद दिनो में ऐसी वासना बना लेते है कि भव-भव में क्लेश भोगने पड़ते है। आत्मगुणानुराग में बाहृा का अनुपयोग - जो मनुष्य जिन पदार्थो के चिन्तन में तन्मय हो जाता है उसे तो उसमे गुण दीखते हे और उसके अतिरिक्त अन्य पदार्थ के गुण नही दीखते, न दोष दीखते, हित अहित किसी भी प्रकार से ज्ञान नही रहता, इसी कारण अन्य से सम्बन्ध नही रहता है। ज्ञानी पुरूष को ऐसे ज्ञानप्रकाश का अनुभव होता है कि उसका चित्त अब किसी भी बाहा विषय प्रसंग में नही लगता | जैसे मोही जीव विवश है ज्ञान और वैराग्य में मन लगाने को, इसी प्रकार ज्ञानी जीव विवश है विषय प्रसंगो मे चित्त लगाने की। गुणो को आत्मवास देने की प्रभुता – एक काव्य में मानतुंग स्वामी ने कहा ह कि हे भगवान ! आप में सब गुण समा गये। सारे गुणो ने आपका ही आश्रय लिया। सो हमे इसमें तो कुछ आश्चर्य नही लगता है। उन गुणो ने हम सब जीवो के पास वास करने के लिए आ आकर कहा कि हमें जरा स्थान दे दो, तो हम सबने उन गुणो को ललकारा। हटो जावो के पास वास करने के लिए आ आकर कहा कि हमें जरा स्थान दे दो, तो हम सबने उन गुणो को ललकारा। हटो जावो यहाँ से । वे सारे गुण क्या करे, झक मार कर आपके 195

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