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रहना यह घोर अंधकार है। अंधकार से यह जीव सुध भूल जाता है, अपनी और बहिर्मुख दृष्टि बनाकर संसार में भ्रमण करता है। मोही जीव किन-किन पदार्थों को अपना समझ रहा है ? स्त्री, पुत्र, धन-वैभव, राज्य, अनाज, पशु, गाय, बैल, भैंस घोड़ा, मोटर साइकिल, कोट, कमीज, न जाने किन-किन वस्तुओ को यह मोही जीव अपनाता है। लोकव्यवहार के कारण कोई मेरा-मेरा कहता है, इनते पर तो कुछ नुकसान नही है किन्तु यह तो उनमें ऐसी आत्मीयता की बुद्वि करे है कि उनका बिगाड़ होने पर अपना बिगाड़ मानता है।
तृष्णा के संस्कार का परिणमन – इस संसार के रोगी को तृष्णा ऐसी लगी है कि ये प्राणी पाये हुए समागम का भी सुख नही भोग सकते। और तो बात जाने दो, भोजन भी कर रहे है तो सुख से भोजन नही कर सकते। तृष्णा अगले कौर की लगी है, इसलिए जो ग्रास मुख में है उसको भी यह सुख से नही भोग पाता है, ऐसे ही इस धन सम्पदा की बात है। तृष्णा ऐसी लगी है कि और धन आ जाय, इसके चिन्तन से वर्तमान में प्राप्त समागम को भी यह जीव सुख से नही भोग पाता है। मान लो जितना धन आज है उसका चौथाई ही रहता तो क्या गुजारा न चलता? या मनुष्य ही न होते, पशुपक्षी, कीड़ा मकोड़ा, होते तो क्या हो नही सकते थे ? यदि पशु पक्षी होते तो कैसा क्लेश में समय गुजारा ? कहीं वृक्ष होते तो खड़े-खड़े रहकर ही फिर सारा समय गुजारते फिरते। किन्तु उन समस्त दुर्गतियों से निकल भी आये है तो भी वर्तमान समागम नही होता है। अरे क्यों नही धर्मपालन के लिए अपना जीवन समझा जाता है ? जब यह जीव मोहवश अज्ञान भाव से अपने में ममकार और अंहकार करता है तब इन कषाया की प्रवृति के कारण इस मिथ्या आशय के होने के कारण शुभ अशुभ कर्मो का बंध होने लगता है।
एक दृष्टान्त द्वारा स्नेह से कर्मबन्ध होने का समर्थन - कर्मो का बन्धन परिणामो के माध्यम से होता है, बाहा वातावरण से नही। जैसे कोई पुरूष किसी धूल भरे अखाड़े में लंगोट कसकर तेल लगाकर हाथ में तलवार लेकर केला बांस आदि पर बड़ी तेजी से तलवार से प्रहार करता है तो वह धूल से लथपथ हो जाता है। वहाँ धूल के चिपकने को क्या कारण है? तो कोई कहेगा कि वाह सीधी सी तो बात है- धूल भरे अखाड़े में वह कूद गया तो धूल नह चिपकेगी तो और क्या होगा? लेकिन कोई दूसरा पुरूष उस ही प्रकार लंगोट कसकर हाथ में तलवार लेकर उन बाँस केलो पर ही तेजी से प्रहार करे, किन्तु तेलभर नही लगाया है, उस पुरूष के तो घूल चिपकती हुई नही देखी जाती है। इस कारण तुम्हारा यह कहना अनुचित है कि धूल भरे अखाड़े में गया इसलिए धूल बँधी। तो दूसरा कोई बोला कि भाई हथियार हाथ में लिया इसलिए धूल बँध गयी। तो दूसरे पुरूष ने भी तो तलवार हाथ में लिया, पर उसके तो धूल चिपकी हुई नही देखी जाती है, इसलिए हथियार का लेना भी धूल के चिपकने का कारण नही है। तो तीसरा कोई बोला कि उसने शस्त्र को केलों पर, बाँसो पर प्रहार किया इस कारण धूल बँधी। तो उस दूसरे
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