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नही है, जिस तत्व की दृष्टि से आनन्द प्रकट होता है उस तत्व की जरा भी खबर नही है और वे भोग के साधन, भारी चेष्टाएँ आदि करे तो वे अपने में पोले है, उन्हें शान्ति संतोष नही प्राप्त हो सकता ।
सांसारिक सुखो की वासनामात्र रम्यता यह सारा इन्द्रियसुख केवल वासनामात्र रम्य है, उस और मेह लगा है इसलिए सुखद मालूम होता है। जो पक्षी बड़ी गर्मी में अपनी स्त्री के साथ याने (पक्षिणी के साथ) भोगो में उलझ जाता है उसे घूप का कष्ट नही मालूम होता है। जब रात्रि को उस पक्षी का वियोग हो जाता है जैसे एक चकवा चकवी होते है उनके रात का वियोग हो जाता है, क्या कारण है, कैसी उनकी बुद्धि हो जाती है कि वे विमुख हो जाते है? तब उन पक्षियों को चन्द्रमा की शीतल किरणें भी अच्छी नही लगती । जब उनका मन रम रहा है, वासना में उलझे है तब घूप भी कष्टदायी नही मालूम होती और जब उनका वियोग हो जाय तो उस समय चन्द्रमा की शीतल किरणे भी अच्छी नही लगती। पक्षियो की क्या बात कहे- खुद की ही बात देख लो - जिसे धन संचय प्रिय है वह पुरूष धन संचय का कोई प्रसगं हो, धन आने की उम्मीद हो, कुछ आ रहा तो ऐसे समय में वह भूखा प्यासा भी रह सकेगा, धूप का भी कष्ट उठा सकेगा और भी दुःख सहन कर लेगा। और यदि कोई बड़ा नुक्सान हो जाय, टोटा पड़ जाये तो ऐसे समय में उसे बढिया भोजन खिलावो, और भी उसका मन बहलाने की सारी बातें करो तो भी वे सारी बातें नीरस लगती है। उनमें चित नही रमता है। तो अब बतलावो सुख क्या है? केवल वासनावश यह जीव अपने को सुखी मानता है ।
इस इंद्रियजन्य सुख में वासनाएँ
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परसमागम में कल्पित सुख की भी अनियतता बनाना, सुख की कल्पनाएँ बनाना बिल्कुल व्यर्थ है वह महाभाग धन्य है जिसकी धुन आत्मीय आनंद को प्राप्त करने की हुई है। संसार के समागत समस्त पदार्थो को जो हेय मानता है, उनमें उपयोग नही फंसाता है वह माहभाग धन्य है । सेसार में तो मोही, भोगी रोगी लोग ही बहुत पड़े हुए है । वे इन ही असार सुखो को सुख समझते है। क्या सुख है? गर्मी के दिनो में पतले कपडे बहुत सुखदाई मालूम होते है, वे ही महीन कपड़े जाड़े के दिनो में क्या सुखकारी मालूम होते है? सुख किस में रहा? फिर बतलावो जो जाड़े के दिनों मे मोटे कपड़े सुहावने लगते है, वे कपड़े क्या गर्मी के दिनो में सुखकर मालूम होते है ? सुख किसमें है सो बतलावो । जिनमें कषाय मिला हुआ है, मन मिला हुआ है ऐसे मित्र अभी सुखदाई मालूम होते है, किसी कारण से मन न मिले, दिल बिगड़ जाय तो उनका मुख भी नही देखना चाहते है ।
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सुख के नियत विषय का अभाव भैया ! सुख का नियत विषय क्या है? किसको मानते हो कि यह सुख है। जो मिष्ट पदार्थ लड्डू वगैरह भूख में सुहावने लग रहे है, पेट भरने पर क्या वे कुछ भी सुहावने लगते है ? कौन से पदार्थ का समागम ऐसा है जिससे हम नियम बना सकें कि यह सुखदायी है? मनुष्यो को नीम कडुवी लगती है, पर ऊट का तो वही भोजन है। ऊट को नीम बड़ी अच्छी लगती है । कहाँ सुख मानते हो ? गृहस्थो को गृहस्थावस्था में सुख मालूम होता है, पर ज्ञान और वैराग्य जग जाय तो उसे ये सब अनिष्ट
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