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व्यक्तित्व दर्शन
गौतम के व्यक्तित्व में जिस प्रकार निर्भीक शिक्षक का रूप निखरा है, उसी प्रकार उनमें कुशल उपदेशक के गुण भी प्रकट हुए हैं । संस्कृत की एक सूक्ति है— वक्ता दशसहस्रषु हजार में कोई एक पंडित होता है, और दश हजार में कोई एक
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वक्ता | हर विद्वान् शास्त्रज्ञ वक्ता नहीं हो सकता । आचार्य सिद्धसेन ने कहा है" हर कोई सिद्धान्त का ज्ञाता भी निश्चित रूप से प्ररूपणा करने योग्य प्रवक्ता नहीं हो सकता ।' 'भगवान महावीर ने बताया है - "धर्म का उपदेश करने वाला निर्भय एवं सम-दृष्टि होना चाहिए, साथ ही उसे यह भी ज्ञान होना चाहिए कि जिसे उपदेश दिया जा रहा है उसकी पात्रता क्या है ? उसके विचार, उसकी श्रद्धा एवं योग्यता कैसी है ? इन विषयों की सम्यक् आलोचना करके हो प्रवक्ता धर्म का उपदेश करे ।”७९ गणधर गौतम की उपदेश शैली में इन गुणों का सामंजस्य हुआ है, यह कहा जा सकता है ? भले ही आज गौतम द्वारा उपदिष्ट वचन, ग्रंथ निबद्ध हमारे समक्ष न रहे हों, किन्तु जिस प्रकार की घटनाएँ उल्लिखित हैं, उसमें गौतम के उपदेश की फलश्रुति प्रायः सार्थक रूप में लक्षित हुई हैं । गौतम ने जिन-जिन को उपदेश दिया, वे चाहे सामान्य ग्रामीण व अबोध किसान रहे हों, या कुशल गाथापति, परिब्राजक एवं सम्राट रहे हों, वे प्रायः उपदेश से प्रभावित होकर उनके शिष्य बने हैं, श्रमण धर्म स्वीकार करके साधना पथ पर अग्रसर हुए हैं ऐसे अनेक उल्लेख मिलते हैं ।
७७. श्तेषु जायते शूरः सहस्र ेषु च पंडित: ।
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा ।।
वि जाणओ विणियमा पण्णवणा णिच्छिओ णामं ।
७८.
७७
७६.
८०. देखिए – (क) उत्तराध्ययन (टीका) अ० १०
(ख) उपदेशपद सटीक गा० ७
(ग) त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित १०/९
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कुशल उपदेष्टा
जहा पुण्णस्स कत्थइ तहा तुच्छस्स कत्थइ
जहा तुच्छस्स कत्थइ तहा पुण्णस्स कत्थइ
अवि य हणे अणाइयमाणे, इत्थंपि जाण सेयंति नत्थि ? केयं पुरिसे कं च नए ?
- आचारांग १२६
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— सन्मति तर्क ३।६३
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