Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ महावीर स्वामी का चौढालिया प्रभु शासन ना सिरदार, सर्व संघ ने सन्तोष में । सोले प्रहर लग देशना दीध, पछे वीर विराज्या मोक्ष में ॥गौ०॥ तीन वर्ष ने साढ़ा आठ मास, चौथा आरा नां बाकी रह्या । दिन दोय तणो संथार, मौन रही मुगते गया ॥गौ०॥ इन्द्र आव्या जी चित्त उदास, देव देवी ना साथ में । जाणे जगमग लग रही ज्योत, अमावस्या नी रात में गौ०॥ मुगति पहोंच्या एकाएक, सात से हुआ ज्यारे केवली । चवदह सौ साध्वियाँ हुई सिद्ध, हूँ सहुँ ने वंदू मन रली ॥गौ०॥ रह्या तीस वर्ष घर मांय, वर्ष बैयालीस संयम पालियो। प्रभु जगतारणा जगदीश, दयामार्ग उजवालियो ।गौ०॥ होजी देव, देवी ने वली इन्द्र, निर्वाण तणो महोत्सव कियो। अरिहंत नो पडियो वियोग, सुर नर नो भरियो हियो ।गो।। साधु साध्वी करता शोक, श्रावक श्राविका पण घणा । भरत क्षेत्र मां पडियो वियोग, आज पछी अरिहंत तणो ।गौ०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178