Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 174
________________ महावीर स्वामी का चौढालिया अब हूँ पूछा करसु किण . आगे। प्रभु म्हारो मन एक थाँसु ही लागे ।गु०।। म्हारो साँसो कहो. कुण टाले । आप बिना पाखण्डी ना मद कुण गाले ।गु०।। हुँता चौदे पूरब ने चौनाणी। पिण मोहनीय कर्म लपेट्यो आणी ॥गु०॥ ऐसो गौतम स्वामी कियो विलापात । ए मोहनी कर्म नी अचरज बात ॥गु०॥ हवे मोहनीय कर्म दूरे टाली। गौतम स्वामी ए सुरती संभाली ॥गु०।। राग-वीतराग राग द्वष ने जीत्या ।।टेर।। वीतराग राग द्वष ने । जीत्या । म्हारों चित्त माँ आई गई चिन्ता ।।वी०॥ तिण वेला निर्मल ध्यान ज ध्यायो। केवल ज्ञान गौतम स्वामी पायो॥वी०॥ बारावर्ष रह्या केवलज्ञानी। बात ज्याँसु कोई नहीं रही छानी ।।वी।। गौतम पण कियो मुक्ति में वासो। संसार नो सर्व देखे तमासो ॥वी०।। जणी राते मुक्ति गया वर्तमान । इन्द्रभूति ने उपन्यो केवलज्ञान ।।वी।। तिण दिन थी ए बाजी दिवाली । म्होटो दिन ए मंगल माली ॥वी०॥ रात दिवाली नो शियल थे पालो । वली रात्रि भोजन नो कर दो टालो ॥वी०॥ 'ऋषि रायचन्द' कहे सुणो हो सुज्ञानी। दया रूप दिवाली थे लेज्यो मानी ॥वी०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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