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ढाल-४
पंछी बैठा सुधर्मा स्वामी पाट, चारों ही संघ चरण सेवता । ज्यांरी पालता अखण्डित आण, सेवा करे देवी ने देवता ॥ गौ० ॥
मुगते पहोंच्या श्री महावीर, प्रभु सुख पाम्या छे शाश्वता । 'ऋषिरायचन्द ' कहे एम, म्हारे अरिहंत वचन की आसता ॥ गौ० ॥
जी थें म गोडे न राख्यो, मुगति जावण रो नाम न दाख्यो || टेर ||
श्री महावीर पहोंच्या निर्वाणी | गौतम स्वामी ए बात ज जाणी ॥गु०॥
आप तो मुझ सू अन्तर
पिण मैं म्हारा मन रो
हूँ सगला पहेला हुवो थारो चेलो ।
इण अवसर आघो किम मेल्यो || गु० ॥ प्रभु तुम चरणें म्हांरो चित्त लागो ।
आप पहुँता निर्वाण मने मेल दियो आगो ||गु०॥ मने आपरा दर्शन लागता प्यारो ।
आप पहोंच्या निर्वाण मने
मेल दियो न्यारो ॥गु ॥
इन्द्रभूति गौतम (परिशिष्ट)
राग - चढो चढो लाड़ा वार म लावो
राख्यो ।
दर्द न दाख्यो || गु०॥ पल्लो । कियो तुम भल्लो || गु० ॥
देतो ।
नहीं लेतो ॥ गु० ॥
काँई ।
में
हूँ आड़ो माँडी नहीं झालतो पण शाबास काम
हूँ तुमने अन्तराय न
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मुगती में जागा व्हेंची
हूँ संकड़ाई न करतो आप साथै हूँ मोक्ष
आई ॥०॥
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