Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 173
________________ १५८. ढाल-४ पंछी बैठा सुधर्मा स्वामी पाट, चारों ही संघ चरण सेवता । ज्यांरी पालता अखण्डित आण, सेवा करे देवी ने देवता ॥ गौ० ॥ मुगते पहोंच्या श्री महावीर, प्रभु सुख पाम्या छे शाश्वता । 'ऋषिरायचन्द ' कहे एम, म्हारे अरिहंत वचन की आसता ॥ गौ० ॥ जी थें म गोडे न राख्यो, मुगति जावण रो नाम न दाख्यो || टेर || श्री महावीर पहोंच्या निर्वाणी | गौतम स्वामी ए बात ज जाणी ॥गु०॥ आप तो मुझ सू अन्तर पिण मैं म्हारा मन रो हूँ सगला पहेला हुवो थारो चेलो । इण अवसर आघो किम मेल्यो || गु० ॥ प्रभु तुम चरणें म्हांरो चित्त लागो । आप पहुँता निर्वाण मने मेल दियो आगो ||गु०॥ मने आपरा दर्शन लागता प्यारो । आप पहोंच्या निर्वाण मने मेल दियो न्यारो ॥गु ॥ इन्द्रभूति गौतम (परिशिष्ट) राग - चढो चढो लाड़ा वार म लावो राख्यो । दर्द न दाख्यो || गु०॥ पल्लो । कियो तुम भल्लो || गु० ॥ देतो । नहीं लेतो ॥ गु० ॥ काँई । में हूँ आड़ो माँडी नहीं झालतो पण शाबास काम हूँ तुमने अन्तराय न Jain Education International मुगती में जागा व्हेंची हूँ संकड़ाई न करतो आप साथै हूँ मोक्ष आई ॥०॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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