Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 170
________________ महावीर स्वामी का चौढालिया श्रावक श्राविका कई नरनार, मिली विनती करे बारम्बार पावापुरी में पधार्या वीतराग प्रगटी पुण्याई म्हारा मोटा जो भाग ॥०।। वली हस्तिपाल राजा विनवे भूपाल, थें छो प्रभुजी म्हारे दीन दयाल । सूझती म्हारे छे मोटी जी शाल लाग रह्यो प्रभु वर्षा जी काल थे। मानी विनती प्रभु रह्याजी चौमास, पावापुरी मां हूवो हर्ष उल्लास । गौतम गणधर गुरांजी रे पास निशदिन ज्ञान रो करे जी अभ्यास ॥०।। साधु अनेक रह्या कर जोड़, सेवा करे सदा होड़ा जी होड़ । चवदे हजार चेला रत्नांरी माल, दीक्षा लीधी छोड़ी माया जंजाल थे। बड़ी चेली चन्दनबाला जी जाण, हुई कुवारी महासती चतुर सुजाण । मोत्याँ नी माला छत्तीस हजार, सगली में बड़ी साध्वी सरदार ॥थें।। चारों ही संघ नित्य सेवा - करे, ... प्रभु जी ने देखी देखी आँख्या ठरे । नवमल्ली ने नवलच्छी :जी राय, ज्यारे दर्शनरी छे चित्त में चाय ॥थे। लाख बत्तीस विमान को राय, आया पावापुरी में प्रभु कने चलाय । दो सहस्र वर्षांरो पडसी भस्मी जी काल, एक पल आउखो आपो दोज़ो जी टाल ॥३०।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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