Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 168
________________ महावीर स्वामी का बौढालिया ढाल-१ सिद्धारथ कुलमा जी उपन्या, त्रिशला दे थारी मात जी। वर्षीदान ज देई करी, संयम सीमो.जगन्नाथ जी॥ थे मन मोह्यो महावीर जी... थें मन मोह्यो महावीर जी, थारी कंचन वर्णीकाय जी । नयन न धापे जी निरखता, दीठा आवो छोदाय जी ॥३०॥ आप अकेला संपम आदर्यो, ऊपन्यो चौथे ज्ञान जी। उत्कृष्ट्यो तप थें आदर्यो, धरतां निर्मल ध्यान जी ॥३०।। उग्रविहार में आदर्यो, कई वासा रह्या वनवास जी।। कई वासा वस्ती में रह्या, रह्या एकण ठामे चौमास जी ॥३०॥ प्रभु पहलो चौमासो थे कियो, अस्थिगाँव मझार जी। दूजो वाणीज गाँव में, पंच चंपा सुखकार जी ॥थे। पांच पृष्ठचम्पा किया, विशाला नगरी में तीन जी। राजगृही में चवदे किया, नालन्देपाडे लवलीन जी ॥थे।। छ चौमासा मिथिला किया, भद्रिका नगरी मां दोय जी । एक कर्यो रे आलम्भिया, सावत्थि नगरी एक होय जी ॥०।। एक अनारज देश में, अपापा नगरी एक जाण जी। एक कर्यो पावापुरी, जठे प्रभु पहोंच्या निर्वाण जी ॥०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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