Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 169
________________ इन्द्रभूति गौतम (परिशिष्ट) हस्तीपाल राजा इम विनवे, हुँ तुम चरणां रो दास जो । एक शाला म्हारे सूझती, आप करो चौमास जी ॥३०।। चालीस चौमासा शहर में, दाख्या दश नगरी ना नाम जी ।। एक अनारज देश में, एक चौमासो वलीगाम जी ॥३०॥ प्रभु गाम नगर पुर विचरिया, भव्य जीवां रे भाग जी। मार्ग बतायो मोक्ष को, कियो उपकार अथाग जी ॥थे०॥ साढ़ा बारह बरसाँ लगे, ऊपर आधो मास जी। छद्मस्थ रह्या प्रभु एटला, पछे केवल ज्ञान प्रकाश जी ॥०॥ वर्ष बयाँलीस पालियो, संयम साहस धीर जी ।। तीस वर्ष घर माँ रह्या, मोक्षदायक महावीर जी ॥०॥ पावापुरी में पधारिया, नरनारी हुआ हुल्लास जी। . 'ऋषिरायचन्द' इम विनवे, हूँ आयो प्रभुजी ने पास जी ॥३०॥ संवत् अठारे गुण चालीस में, नागौर शहर चौमास जी । पूज्य जैमल जी के प्रसाद थी, मैं ए करी अरदास जी ॥थें। ढाल-२ राग-काची कलियां शासननायक वीर जिनन्द, तीरथनाथ जाणे पुनमचन्द । चरणे लागे ज्याँरे चौंसठ इन्द्र, सेवा करे ज्यारी सुरनर बृन्द ।। थें अब को चौमासो स्वामी जी अठे करो ज़ी, अठे करो ३ जी । चरम चौमासो स्वामी जी अठे करोजी ........ हस्तिपाल राजा विनवे कर जोड़, पूरो प्रभुजी म्हारा मनडारी कोड़ । शीश नमाय ऊभो जोड़ी जी हाथ, करुणासागर वाजो कृपा जी नाथ ॥थे०।। रायनी राणी विनव . राजलोक, पुण्य जोगे मिल्यो सेवानो संजोग । मन वांछित सहु मिलिया जी काज, में दयाकरी सामु जोवो जिनराज ॥३०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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