Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 113
________________ ६८ इन्द्रभूति गौतम निग्रन्थ धर्म के रहस्यों को भली प्रकार जानने वाला श्रमणोपासक भी ।९२ ऋषभदत्त की पत्नी थी देवानन्दा । भगवान महावीर के आगमन की सूचना पाकर ऋषभदत्त एवं देवानन्दा उनके दर्शनों के लिए गये । देवानन्दा ने भगवान महावीर का अतिशय सम्पन्न दिव्य रूप देखा तो उसके मन में वात्सल्य की धारा उमड़ पड़ी। वह रोमांचित हो गई और पुत्र स्नेह का भाव प्रबल हो उठा। उसकी दोनों आँखों से आनन्द के आंसू बरसने लग गये और भावावेग में उसकी कंचुकी के बन्धन शिथिल होकर, स्तनों से दूध की धारा बहने लग गई। __गौतम स्वामी ने जब देवानन्दा को इस प्रकार रोमांचित होकर स्तनों से दूध की धारा बहाते देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ। भगवान महावीर से पूछा--- "भंते ! देवानन्दा इस प्रकार क्यों, किस कारण रोमांचित हो रही है ?" भगवान ने कहा- 'गौतम ! देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है, मैं इस देवानन्दा ब्राह्मणी का पुत्र हूँ। इसी पुत्र-स्नेह के कारण आनन्द का वेग उमड़ पड़ा, वह उसे रोक नहीं पाई, और इस प्रकार रोमांचित हो उठी ।"९3 गौतम के मन में एक प्रश्न के समाधान के साथ ही दूसरा प्रश्न उठा-भंते ! आपकी माता तो त्रिशला क्षत्रियाणी है--ऐसा सर्वविदित है । फिर देवानन्दा आपकी माता किस प्रकार हो सकती है ?" गौतम के प्रश्न पर भगवान ने गर्भपरिवर्तन की घटना की चर्चा की, जिसे सुनकर ऋषभदत्त-देवानन्दा सहित सम्पूर्ण परिषद् को आश्चर्य हुआ।९४ ९२. ९३. कल्पसूत्र एवं भगवती आदि सूत्रों के आधार पर ज्ञात होता है कि ऋषभदत्त पहले तो वैदिक धर्म का अनुयायी ही था, पर बाद में 'श्रावक' बन गया। भगवान महावीर पहले देवानन्दा की कुक्षी में आये थे। इस दृष्टि से देवानन्दा को माता एवं ऋषभदत्त को पिता कहा गया है । गोयमा ! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तएतेणं पुव्व पुत्त सिह रागेणं आगय–पण्या जाव समूसविय रोमक्खा ~भगवती श० ९ । उ०६ विशेष विवरण के लिए देखें (क) त्रिषष्टिशलाका० १०८।१०-१८ (ख) तीर्थंकर महावीर भा० १ पृ० १०३ (ग) महावीर चरियं (गुणचन्द्र) पत्र २५९-२ ९४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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