Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

Previous | Next

Page 132
________________ परिसंवाद भगवान - निष्क्रियता प्राप्त होने पर आत्मा को सिद्धि लाभ प्राप्त हो जाता ज्ञान और क्रिया गौतमस्वामी ने पूछा - " भगवन् ! कोई मनुष्य ऐसा व्रत लेता है कि मैं आज से सर्व प्राण, भूत, जीव एवं सत्वों की हिंसा का त्याग करता हूँ, तो उसका वह व्रत 'सुव्रत' कहलायेगा या 'दुर्व्रत' ? है । २६ भगवान ने कहा - " गौतम ! वह व्रत 'सुव्रत' भी हो सकता है ओर 'दुव्र' त' भी । " गौतम - "भगवन् ! इसका क्या कारण है ?" भगवान - " गौतम ! उक्त प्रकार का व्रत लेने वाला व्यक्ति जीव, अजीव, त्रसस्थावर के परिज्ञान से रहित है, तो उसका व्रत, सुव्रत नहीं, किन्तु 'दुव्रत' कहलायेगा । जीव- अजीव के ज्ञान से रहित व्यक्ति यदि कहे कि मैं हिसा का त्याग करता हूँ तो उसकी वह भाषा मिथ्या भाषा है, वह असत्यभाषी पुरुष मन-वचन कर्मणा स्वयं हिंसा करना, करवाना और उसका अनुमोदन करना इन तीनों प्रकार के संयम से रहित है, विरति से रहित है और एकांत हिंसा करने वाला अज्ञानी है ।" जिस पुरुष को जीव अजीव का ज्ञान है, वह यदि हिंसा न करने का व्रत लेता है तो उसका व्रत 'सुत्रत' है । वह सर्व प्राण- भूत - सत्वों के प्रति संयत है, विरत है, संवर युक्त एकांत अहिसक तथा ज्ञानी है । २६. ११७ गौतम स्वामी ने भगवान से पूछा - " कई इतर दर्शन वाले कहते हैं, शील ( आचार) ही श्र ेय है, दूसरे कई कहते हैं- श्रुत (ज्ञान) श्र ेय है, और एक तीसरे २७. सवणे नाणे विन्नाणे पच्चक्खाणे य संजमे । हवे तवे व वोदाणे अकिरिया सिद्धि | भगवती श० ७।३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only शील और श्रुत - भगवती श० २:३।५ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178