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इन्द्रभूति गौतम
दुष्कर्मों के वर्णन सुनाकर-कडाणं कम्माणं वेइयत्ता मोक्खो पत्थि अवइत्ता " के सिद्धान्त वाक्य की पुष्टि करते हैं।
सुबाहुकुमार
दुःख विपाक की भांति सुख विपाक में भी दस पुरुषों की जीवन गाथा है। सुबाहु कुमार की समृद्धि, सौम्यता, भव्यता आदि उत्कृष्ट मनुष्य ऋद्धि देखकर गौतम स्वामी भगवान से पूछते हैं- "भंते ! सुबाहुकुमार इतना इष्ट, प्रिय, मनोहर सौम्य, सुभग, प्रिय दर्शन लग रहा है, इस प्रकार की उत्तम मनुष्य ऋद्धि इसने प्राप्त की है वह किन शुभ कर्मों, उत्कृष्ट तपश्चरणों का फल है ?" इसके उत्तर में भगवान सुबाहु कुमार का पूर्व जीवन वृत्त सुनाते हैं ।
लोक विषयक
लोक एवं जीव
गौतम स्वामी ने पूछा--"भगवन् ! यह लोक कितना बड़ा है ?"
भगवान ने कहा-गौतम ! यह लोक बहुत ही बड़ा है, पूर्व-पश्चिम आदि सभी दिशाओं में असंख्य कोटा-कोटि योजन लंबा चौड़ा है, इसका विस्तार अपरिमेय है।'
४०. भगवती सूत्र ४१. विस्तार के लिए देखिए-विपाक सूत्र २॥
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