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परिसंवाद
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शक्ति का अद्भुत प्रदर्शन एवं दिव्य नाटक दिखाता है तो, गौतम स्वामी के मन में जिज्ञासा उठती है--इसने पूर्व भव में ऐसा क्या पुण्य किया था, यह कौन था ? इसने क्या दान दिया, क्या रूखा-सूखा निर्दोष आहार किया, किस प्रकार का तपश्चरण किया और किन-किन विशिष्ट साधना-विधियों की आराधना को ? किस तथारूप श्रमण के पास आर्यधर्म का श्रवण कर उस पर श्रद्धा प्रतीति एवं आचरण किया, जिसके प्रभाव से इस प्रकार की विपुल दिव्य देव ऋद्धि प्राप्त की है ?" ३८
गौतम स्वामी के इसी प्रश्न के उत्तर में पूरा रायपसेणी सूत्र का व्याख्यान हो जाता है।
मृगापुत्र
इसी प्रकार विपाक सूत्र का पूरा वर्णन पूर्व एवं भावी जीवन के दुष्कर्मों एवं सत्कर्मों का लेखा जोखा, एवं उनके कटु एवं मधुर परिणामों की रोमांचक कहानी प्रस्तुत करते हैं।
__ मृगापुत्र का वर्णन पीछे किया जा चुका है, उसकी दुःखमय बीभत्स अवस्था देखकर गौतम स्वामी के मन में वितर्क उठता है-- "इस पुरुष ने पूर्व जन्म में किस प्रकार के घोर, दुष्कर्म किये होंगे, जिनके कटु परिणामों को भोगता हुआ यह प्रत्यक्ष में ही नरक के सदृश घोर वेदना अनुभव कर रहा है ?"३०
गौतम स्वामी के इसी वितर्क के उत्तर में भगवान महावीर मृगापुत्र के पूर्व जीवन की पाप-पूर्ण लोमहर्षक कहानी गौतम के समक्ष उद्घाटित कर देते हैं । इसी प्रकार उज्झित कुमार को जब अपराधी के रूप में वध्यभूमि की ओर ले जाते देखते हैं, तो उनके मन में करुणा के साथ उसके कृत्याकृत्य का विमर्श भी होता है, वे भगवान महावीर से उसके कष्ट पाने का कारण पूछते हैं और भगवान महावीर उसके
३८. पुव्वभवे के आसी ? किनामए ?..."किंवा दच्चा, किंवा भोच्चा, किंवा किच्चा,
किंवा समायरित्ता जेणं सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी जाव देवाणु भावे लद्ध?
-रायपसेणी ४२ ३९. अहो णं इमे दारए पुरा पोराणाणं दुच्चिण्णाणं ""पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे नरग-पडिरुवियं वेयणं वेयइ त्ति।
-विपाक १।१
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