Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 143
________________ १२८ इन्द्रभूति गौतम उपदेश दिया। गौतम के शिक्षापद सुनकर उदकपेढाल ने क्षमा माँगी और भगवान महावीर के निकट आकर पंच महाव्रत रूप धर्म स्वीकार किया। विकास और ह्रास का कारण एक बार राजगृह के गुणशीलक उद्यान में भगवान महावीर पधारे । धर्म प्रवचन के पश्चात् गणधर गौतम के मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई। भगवान महावीर के निकट आकर पूछा- "भगवन् ! आत्मा का विकास और ह्रास किस कारण होता है ? भगवान ने कहा- 'गौतम' ! मैं इस तत्व को एक रूपक द्वारा तुम्हें समझाता हूँ। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा अपनी ज्योति, शुभ्रता और सौम्यता आदि में पूर्णिमा के चन्द्रमा से हीन होता है । द्वितीया का चन्द्रमा उससे होनतर होता हुआ अमावस्या के दिन हीनतम स्थिति को प्राप्त हो जाता है। उसकी ज्योत्स्ना, कांति और शीतलता आदि गुणों का आभास तक नहीं मिलता।" "भन्ते ! यह बिल्कुल सत्य है । ___ “गौतम ! जो साधक क्षमा, सन्तोष, गुप्ति, सरलता, लघुता-नम्रता, मृदुता सत्य, तप, ब्रह्मचर्य और त्याग---उक्त दस मुनि धर्मों के प्रति उपेक्षा करता है। असावधानी बरतता है, उनका यथाविधि पालन नहीं करता है, वह आत्मा की उज्वलता, उच्चता और समता आदि गुणों से कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक के चन्द्रमा की स्थिति के समान ह्रास की स्थिति में चलता रहता है । उसके आत्मगुण हीन से हीनतर होते चले जाते हैं। ......"पुनः शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का चन्द्रमा विकास की ओर ऊर्ध्वगामी बनता है। उसकी ज्योत्स्ना और कान्ति आदि प्रतिरात्रि विकसित होते जाते हैं। प्रतिपदा के चन्द्रमा की तुलना में द्वितीया का चन्द्रमा अधिक ज्योतिर्मय होता है और इसी क्रम से अन्ततः पूर्णिमा का चन्द्रमा विकास की पूर्ण स्थिति में पहुँच जाता है । वह सब कलाओं से परिपूर्ण हो जाता है।" ३४. सूत्र कृतांग २१७ । गौतम के शिक्षा वाक्य देखें खण्ड ४ निर्भीक शिक्षक में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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