Book Title: Indrabhuti Gautam Ek Anushilan
Author(s): Ganeshmuni, Shreechand Surana
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 130
________________ परिसंवाद भगवान ने कहा - " गौतम ! कषाय चार प्रकार के हैं । क्रोध, मान, माया और लोभ । " गौतम—“भन्ते ! क्रोध आदि कषायों की प्रतिष्ठा ( आधार भूमि) क्या है ?" भगवान —- " गौतम ! कषाय आत्म-प्रतिष्ठित ( स्व - आधार से ) पर प्रतिष्ठित, तदुभय प्रतिष्ठित एवं अप्रतिष्ठित (बिना किसी कारण के ) यों चार प्रकार से कषाय की प्रतिष्ठा ( आधार -- कारण भूमि) है ।" गौतम - "भन्ते ! क्रोध आदि की उत्पत्ति के कितने कारण हैं ?" ११५ भगवान - " गौतम ! चार प्रकार से क्रोध आदि की उत्पत्ति होती है । क्षेत्र से, वस्तु से, शरीर से एवं उपधि से । १२५ एकबार भगवान महावीर कौशाम्बी से विहार करके राजगृह पधारे । गौतम स्वामी नगर में भिक्षा के लिये गए तो वहाँ उन्होंने एक चर्चा सुनी-तुरंगिका नगरी के बाहर उद्यान में भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य - स्थविर आये हैं। उनसे श्रावकों ने पूछा- संयम का फल क्या है ? तप का फल क्या है ? इस पर स्थविरों ने उत्तर दिया- संयम का फल है आनव रहित होना और तप का फल है कर्म का नाश । इस उत्तर पर कुछ गृहस्थों ने कहा - "संयम से देवलोक की प्राप्ति होती है, इसका तात्पर्य क्या है ?" उपासना का फल स्थविरों ने उत्तर दिया – “सराग अवस्था में पाले गये संयम एवं सराग अवस्था में आचरित संयम में अन्तर की आसक्ति के कारण वह मोक्ष के बदले देवत्व को प्राप्त करता है ।' २५. प्रज्ञापना, पद १४ इस प्रकार प्रश्नोत्तरों से गौतम स्वामी को बड़ा आश्चर्य हुआ । वे भगवान महावीर के समीप आकर पूछने लगे - " भन्ते ! उन पाश्र्वापत्य श्रमणों का यह उत्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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