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रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियाँ
331 कर्मों के लेप में लिपटे हुये हो। अब तुम्हें मोह निद्रा को भंग कर और रागद्वेष को दूर कर परमार्थ प्राप्त करना चाहिए।
बालम तहुं तन चितवन गागरि फूटि । चरा गो फहराय सम गै छूटि, बालम ।।१।। हमं तक रहूं जे सजनी रजनी घोर । घर करकेउ न जाने चहुदिसि चोर, बालम ।।२।। पिउ सुधि पावत वन मैं पैसिउ पेलि । छाडउ राज डगरिया भयउ अकेलि, बालम ।।३।। काय नगरिया भीतर चैतन भूप । करम लेप लिपटा बल ज्योति स्वरूप, बालम ।।५।। चेतन बूझि विचार घरहु सन्तोष । राग द्वेष दुइ बंधन छूटत मोष, बालम ।।१३।।११
पत्नी सुमति पति चेतन के वियोग में जल विन मीन के समान तड़पती है (वही, अध्यात्म गीत पृ. १५९-६०) और ऐसे मग्न होना चाहती है जैसे दरिया में बूंद समा जाती है। अपने ही अथक प्रयत्नों से वह अन्ततः प्रिय चेतन को पाने में सफल हो जाती है - पिय मेरे घट में पिय मांहि जलतरंग ज्यों दुविधा नाहीं (वही पृ. १६१)। इसलिए वह कह उठती है-देखो मेरी सखिन य आज चेतन घर आवे। (ब्रह्मविलास पद १४)। सतगुरु ने कृपा कर इस विछुरे कंत को सुमति से मिला दिया (हिन्दी पद संग्रह पद ३७९)।
___ साधक की आत्मा रूप सुमति के पास परमात्मा स्वयं ही पहुंच जाते हैं क्योंकि वह प्रिय के विरह में बहुत क्षीण काय हो गई थी। विरह के कारण उसकी बेचैनी तथा मिने के लिए आतुरता बढ़ती ही गई। उसका प्रेम सच्चा था इसलिए भटका हुआ पति स्वयं वापिस आ गया।