Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan
View full book text
________________
476
हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना १९१-३. विनयपत्रिका, ५३। १९४. सूरसारावली, पद ९९३, पृ. ३४ (वेंकटेश्वर प्रेस)। १९५. सूर और उनका साहित्य, पृ. २११। १९६. बनारसीविलास, शिवपच्चीसी, पृ. २११। १९७. नाटक समयसार, मोक्षद्वार, १०, पृ. २१९ । १९८. कबीर ग्रंथावली, २१९, पृ.१६२। १९९. सन्तसुधासार, पृ. ६४८। २००. आनन्दघन बहोत्तरी, पृ. ३५९। २०१. सुण्ण णिरंजन परम हउ, सुइणेमाउ सहाव। भावहु चित्त सहावता, जउ
रासिज्जइजाव।।दोहाकोश, १३९, पृ. ३०। २०२. उदयन अस्तराति न दिन, सरबे सचराचर भाव न भिन्न।सोई निरंजन डाल
नमूल, सर्वव्यापिक सुषम न अस्थूल।। हिन्दी काव्यधारा, पृ.१५८। २०३. कबीर-डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई,
पंचम संस्करण, पृ.५२-५३। २०४. हिन्दी की निर्गुण काव्यधारा और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि, पृ. ३५४। २०५. हिन्दी की निर्गुण काव्यधारा और उसकी दार्शनिक पृष्ठभूमि, पृ. ३५५ । २०६. रंजनं रागाद्युःरंजनं तस्मान्निर्गतपस्थानांगसूत्र, अभिधान राजेन्द्र कोश,
चतुर्थ भाग, पृ. २१०८, कल्प सुबोधिका में भी लिखा हैं - रंजनं
रागाद्युपरजंनंतेन शून्यत्वात् निरंजनम्। परमात्म प्रकाश, १-१७, १२३। २०७. मध्यकालीन धर्मसाधना - डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, प्र.संस्करण, १९५२
पृ.४४। २०८. परमात्मप्रकाश, पृ. २७-२८। २०९. परम निरंजन परमगुरु परमपुरुष परधान। बन्दहं परम समाधिगत,
अपभंजन भगवान।। बनारसीविलास, कर्मछत्तीसी, पद्य १, पृ.१३६। आनन्दघन बहोत्तरी, पृ.३६५। तुलनार्थ देखिए, बाबा आत्म अगोचर कैसा तातें कहि समुझावों ऐसा। जो दीसै सो तो है वो नाहीं, है सौ कहा न जाई। सैना बैना कहि समझाओ, गूंगे का गुड़ भाई। दृष्टि न दीसै मष्टि न आवै, विनसै नाहि नियारा। ऐसा ग्यान कथा गुरु मेरे, पण्डित करो विचारा।।
कबीर, पृ.१२६। २११. पांचरात्र, लक्ष्मीसंहिता साधनांक, पृ. ६०।
०.

Page Navigation
1 ... 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516