Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan
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१६९.
१७५.
संदर्भ अनुक्रमणिका १६४. वही, पृ.३। १६५. आजु सुर ससि के घर आया। ससि सूरहि जनु होइ मेरावा, वही, पृ. १२३ । १६६.
हिय कै जोति दीप वह सूझा, जायसी ग्रन्थावली, पृ. ६१ । १६७. वही, पृ. ५०। १६८. वही, पृ.५७।
जायसी का पद्मावतः काव्य और दर्शन, पृ१९४-२०४। १७०. कबीर ग्रन्थावली, पृ.१०५। १७१. आप ही आपह विचारिये तब कैसा होई आनंद रे, कबीर ग्रंथावली, पृ.८९। १७२. वही, पृ.५६। १७३. वही, पृ. ३२३। १७४. निजस्वरूप निरंजना, निराकार अपरंपार, वही, पृ. २२७।
वही, पृ.७३। १७६. वही, पृ.७३। १७७. सन्तवानी संग्रह, पृ.१०७। १७८. सूरसागर, पद ३६९। १७९. वही, पद ४०७। १८०. जिय जब तैं हरि तें बिगान्यौ। तब तै गेह निज जान्यौ। माया वस सरूप
बिसरायौ। तेहि भ्रम तें दारुन दुःख पायौ। विनयपत्रिका, १३६। १८१. वही,५३। १८२. गीतावली, ५,५-२७। १८३. परमार्थप्रकाश, प्र.मकाः । १८४. पाहुड़दोहा, २६-३१। १८५. कबीर ग्रंथावली, पृ. २४३ । १८६. कहै कबीर सबै सज विनस्या, रहै राम अविनासी रे। निज सरूप निरंजन
निराकार, अपरंपार अपार। अलख निरंजन लखै न कोई निरभै निराकार है
सौइ। कबीर ग्रंथावली, पृ. २१०.२२७, २३०। १८७. नाटक समयसार, ४ पृ.५। १८८. कबीर ग्रन्थावली, परचा कौ अग, पृ.१११ । १८९. बनारसीविलास, अध्यातम गीत, पृ.१६१। १९०. सुन्दरविलास, पृ.१२९।

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