Book Title: Hindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Author(s): Pushplata Jain
Publisher: Sanmati Prachya Shodh Samsthan
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हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना ३६८. मीरा पदावली, पृ.२०। ३६९. भारतीय साधना और सूरदास, पृ. २०८। ३७०. साहित्य की साथी, पृ. ६४। ३७१. भीराबाई, पृ. ४०५। ३७२. वेद कहे सरगुन के आगे निरगुण का विसराम। सरगुन-निरगुन तहु
सोहागिन, देख सबहि निजधाम।। सुख-दुख वहां कछू नहिं व्यापै, दरसन आठो जाम। नूरे ओढन नूरे डासन, नूरेका सिरहान। कहै कबीर सुनो भई
साधो, सतगुरु नूर तमाम।। कबीर डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ. २७५ । ३७३. सूर और उनका साहित्य, पृ. २४५ । ३७४. सूरसागर, ३३९। ३७५. वही, स्कन्ध १, पद २।। ३७६. विनयपत्रिका, १११ वां पद। ३७७. जायसीग्रन्थावली, पृ.३। ३७८. समयसार, ४९; नाटक समयसार, उत्थानिका, ३६-४७। ३७९. हिय के जोति दीपवह सूझा-जायसी ग्रन्थावली, पृ.५१ । ३८०. जायसी ग्रंथावली, पृ. १५६। ३८१. गुरु मोरे मोरे हिय दिये तुरंगम ठाट, वही, पृ.१०५। ३८२. नयन जो देखा कंबलभा, निरमल नीर सरीर। हंसत जो देख हंस भा, दसन
जोति नग हीर।। वही, पृ. २५। ३८३. प्रवचनसार, प्रथम अधिकार, बनारसी विलास, ज्ञानवावनी, ४ ३८४. जायसी ग्रन्थमाला, पृ. ३०१। ३८५. जब लगि गुरु हौं अहा न चीन्हा। कोटि अन्तरपद बीचहिं दीन्हा।। जब
चीन्हा तब और कोई। तन मन जिउजीवन सब सोई।। 'हो हो' करत धोख इतराही। जब भी सिद्ध कहां परछाहीं।। वही, पृ. १०५, जायसी का पद्मावती काव्य और दर्शन, पृ. २१९-२६।।
नाटक समयसार, जीवद्वार २३। ३८७. प्रवचनसार, ६४; बनारसीविलास, ज्ञानवावनी, १६-३०॥

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